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अनानुगामिक अवधिज्ञान
अब सूत्रकार अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में जो परस्पर अन्तर है, वह बताते हैं अंतगयस्स मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएणं ओहिणाणेणं पुरओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि जोयणाइं जाणइ पासइ । मग्गओ अंतगएणं ओहिणाणेणं मग्गओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ । पासओ अंतगएणं ओहिणाणेणं पासओ चेव संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मज्झगएणं ओहिणाणेणं सव्वओ समंता संखिज्जाणि वा असंखिज्जाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ । सेत्तं आणुगामियं ओहिणाणं ॥ १० ॥
प्रश्न अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान में परस्पर क्या अन्तर है ?
उत्तर - पुरतः अन्तगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी, सामने के ही संख्यात या असंख्यात योजन के रूपी पदार्थ जानता देखता है, मार्गतः अन्तगत अवधिज्ञान अवधिज्ञानी पीछे के ही संख्यात या असंख्यात योजन के रूपी पदार्थ जानता देखता है, तथा पार्श्वतः अन्तगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी, पार्श्व (बगल) के ही संख्यात या असंख्यात योजन रूपी पदार्थ जानता देखता है । परन्तु मध्यगत अवधिज्ञान से अवधिज्ञानी, सभी दिशाओं के संख्यात या असंख्यात योजन के रूपी पदार्थ जानता देखता है। यह दोनों में अन्तर है ।
विशेष - परन्तु दोनों में सर्वथा अन्तर हो- ऐसी बात नहीं । १. जैसे तीनों प्रकार के अन्तगत अवधिज्ञान से, एक दिशा के संख्यात योजन क्षेत्र में रहे रूपी पदार्थ जाने जाते हैं, वैसे ही मध्यगत अवधिज्ञान से भी सभी दिशाओं के मात्र संख्यात योजन क्षेत्र में रहे हुए रूपी पदार्थ जाने जा सकें तथा २. जैसे मध्यगत अवधिज्ञान ऐसा भी है कि जिससे सभी दिशा के असंख्यात योजन क्षेत्र में रहे हुए रूप पदार्थ जाने जाते हैं, वैसे ही तीनों अन्तगत अवधिज्ञान भी इस प्रकार के हैं कि एक दिशा के असंख्य योजन क्षेत्र में रहे हुए रूपी पदार्थ जाने जा सकें। यह आनुगामिक अवधिज्ञान है ।
अब सूत्रकार, अवधिज्ञान के अनानुगामिक नामक भेद का स्वरूप बताते हैं ।
२. अनानुगामिक अवधिज्ञान
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से किं तं अणाणुगामियं ओहिणाणं ? अणाणुगामियं ओहिणाणं से जहाणामए केइ पुरिसे एगं महंतं जोइट्ठाणं काउं तस्सेव जोइट्ठाणस्स परिपेरंतेहि परिपेरंतेहिं, परिघोलेमाणे परिघोलेमाणे तमेव जोइट्ठाणं पासइ, अण्णत्थगए ण जाणइ ण पासइ । एवामेव अणाणुगामियं ओहिणाणं जत्थेव समुप्पज्जइ तत्थेव संखेज्जाणि वा
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