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आनुगामिक अवधिज्ञान
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१. आनुगामिक = साथ चलने वाला। २. अनानुगामिक = साथ नहीं चलने वाला। . ३. वर्द्धमान ___ = (पूर्व की अपेक्षा) बढ़ता हुआ। ४. हीयमान
_ = (पूर्व की अपेक्षा) घटता हुआ। ५. प्रतिपाति
(एक ही क्षण में) गिरने वाला। ६. अप्रतिपाति
= नहीं गिरने वाला। शंका - अवधिज्ञान के आनुगामिक और अनानुगामिक, इन दो भेदों में ही शेष वर्द्धमान आदि चारों भेद समाविष्ट किये जा सकते हैं, तब उनको पृथक् क्यों कहा गया?
समाधान - समाविष्ट तो किये जा सकते हैं, परन्तु ऐसा करने से अवधिज्ञान के वर्द्धमान आदि शेष चार विशेष भेदों का ज्ञान नहीं हो सकता। महान् पुरुषों को शास्त्रारंभ का प्रयास विशेष ज्ञान कराने के लिए होता है। अतएव शास्त्रकार ने विशेष ज्ञान कराने के लिए वर्द्धमान आदि शेष भेदों को पृथक् भेद के रूप में उपस्थित किया है। अब सूत्रकार आनुगामिक अवधिज्ञान के उत्तर-भेद प्रभेदों को प्रस्तुत करते हैं।
१. आनुगामिक अवधिज्ञान से किं तं आणुगामियं? आणुगामियं ओहिणाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहाअंतगयं च मज्झगयं च॥ ... प्रश्न - वह आनुगामिक अवधिज्ञान क्या है ?
उत्तर. - आनुगामिक के दो भेद हैं-१. अंतगत और २. मध्यगत। - विवेचन - 'अनुगम' का अर्थ है-साथ चलना। अतएव जिस अवधिज्ञान का स्वभाव ऐसा हो वह अपने स्वामी को जिस क्षेत्र में उत्पन्न हुआ है, उससे अन्य क्षेत्र में जाते हुए भी अपने स्वामी . के साथ ही जाए। अतएव उसे 'आनुगामिक अवधिज्ञान' कहते हैं।
दृष्टान्त - जैसे आँखें, अपने स्वामी के साथ ही जाती है, वैसे ही आनुगामिक अवधिज्ञान भी अपने स्वामी के साथ ही जाता है।
जिस प्रकार आँखों का स्वामी किसी एक क्षेत्र में रहकर भी अपनी आँखों से जितने द्रव्य आदि देखे जा सकते हैं, उन्हें देख सकता है और उस क्षेत्र से अन्यत्र आदि जाकर भी उतने द्रव्यादि देख सकता है, (क्योंकि आँखें उसके साथ ही रहती है) उसी प्रकार आनुगामिक अवधिज्ञान का स्वामी भी, उसे जिस क्षेत्र में अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, उस क्षेत्र में जाकर भी उतने द्रव्यादि जान सकता है, क्योंकि आनुगामिक अवधिज्ञान का क्षयोपशम उत्पत्ति क्षेत्र से अन्य क्षेत्र में जाने पर भी विद्यमान रहता है।
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