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घट का दृष्टांत
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अन्य श्रद्धा वाले बन जाते हैं। जिन्हें शुद्ध दृढ़ाचारी संतों का संसर्ग कम मिलता है तथा जिनमें समझ शक्ति और परीक्षा बुद्धि की मन्दता होती है। ऐसे जीवों को विशिष्ट श्रुतज्ञान देने से भविष्य में हानि की आशंका रहती है। अतएव ऐसे संभावित दुष्परिणाम वाले श्रोता, विशिष्ट श्रुतज्ञान के अपात्र संभव हैं।
अथवा घड़े चार प्रकार के होते हैं - १. नीचे से छिद्र वाले २. मध्यम से खण्डित ३. ऊपर से कंठ हीन और ४. सम्पूर्ण अखण्ड।
१. जो नीचे से छिद्र वाले होते हैं, उनमें यदि जल भरा जाय, तो वे जब तक भूमि से संलग्न रहते हैं, तब तक उनमें से जल खास नहीं निकलता किंचित् मात्र ही निकलता है। कई श्रोता ऐसे घड़े के समान होते हैं, वे जब तक आचार्य के व्याख्यान स्थल में बैठे रहते हैं और आचार्यश्री जब तक पहिले का अनुसंधान करके सूत्रार्थ सुनाते हैं, तब तक वे उसे धारण किये रहते हैं और समझ जाते हैं, परन्तु ज्योंही व्याख्यान पूरा होने पर व्याख्यान स्थल से उठते हैं, त्योंही पूर्वापर अनुसंधान की शक्ति से रहित होने के कारण, सुना समझा हुआ ज्ञान बिसर जाते हैं। ऐसे
श्रोता धारण की दृष्टि से एकांत अयोग्य हैं। . : २. जो घड़े मध्य से खण्डित होते हैं, उनमें यदि पूरे घड़े जितना जल भरा जाय, तो उसमें उस जल का एक चौथाई, एक तिहाई, दो चौथाई, दो तिहाई या तीन चौथाई जल ही रहेगा, शेष जल निकल जायेगा। कुछ श्रोता इसी प्रकार के होते हैं। उन्हें आचार्यश्री, जितना सुनाते हैं, उसमें से वे एक चौथाई, एक तिहाई, दो चौथाई, दो तिहाई या तीन चौथाई ही समझ पाते हैं - टिका पाते हैं। ऐसे श्रोता धारणा के लिए अल्पपात्र, अर्द्धपात्र, द्विभाग-पात्र, त्रिभाग या चतुर्भागहीन पात्र समझने चाहिए। ...३. जो घड़े ऊपर से कंठ हीन होते हैं, उनमें यदि एक घड़े जितना जल भरा जाय, तो उनमें कुछ कम सम्पूर्ण जल समा जाता है। कुछ श्रोता भी उन घड़ों के समान होते हैं, उन्हें आचार्यश्री जितना सुनाते हैं, उसमें से वे कुछ कम सम्पूर्ण समझ जाते हैं और जितना समझते हैं, उतना धारण कर रखते हैं। ऐसे श्रोता अधिकांशतः पात्र हैं।
. ४. जो घड़े सम्पूर्ण अखण्ड होते हैं, उनमें यदि एक घड़े जितना जल भरा जाय, तो उनमें वह जल सम्पूर्णतया समा जाता है। कुछ श्रोता भी ऐसे ही होते हैं। उन्हें आचार्यश्री जितना सुनाते हैं, वे उसे सम्पूर्ण समझ जाते हैं और भविष्य में स्मरण में रख लेते हैं। ऐसे श्रोता पूर्ण पात्र हैं।
अथवा घड़े दो प्रकार के होते हैं - १. कच्चे-अग्नि से बिना पके हुए और २. पके हुए। - १. जो घड़े कच्चे होते हैं, उनमें यदि जल डाला जाय, तो जल का भी विनाश हो जाता है और उस घट का भी। जो श्रोता कच्चे घड़े के समान होते हैं, उन्हें विशिष्ट श्रुतज्ञान देने से वह
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