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नन्दी सूत्र
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श्रुतज्ञान का दान भी व्यर्थ जाता है और वे उस विशिष्ट श्रुतज्ञान को न समझने के कारण या शंकाकुल होकर श्रद्धाभ्रष्ट हो जाते हैं। ऐसे श्रोता विशिष्ट ज्ञानदान के लिए एकांत अयोग्य हैं।
.. २. जो घड़े पक्के होते हैं, उनमें जल डाला जाये, तो वे घट अधिक परिपक्व बनते हैं और जल शीतल बनता है। उनके समान जो श्रोता होते हैं, उनको यदि श्रुतज्ञान दिया जाये, तो उनकी श्रद्धा दृढ़ होती है और श्रुतज्ञान सम्यग्रुप में परिणत होता है। अतएव ऐसे श्रोता, ज्ञानदान के पात्र हैं। उन्हें ज्ञान दिया जाये।
३. चलनी का दृष्टान्त कई श्रोता चलनी के समान अग्राही होते हैं। जैसे - चलनी में पानी डालने पर टिकता नहीं, वैसे ही कुछ श्रोता, इधर शब्द कान में पड़ता है और उधर मंद क्षयोपशम अथवा एकाग्रता के अभाव में भूलते जाते हैं। ऐसे अग्राही श्रोता, धारणा के लिए एकांत अपात्र है।
१. मुद्गशैल २. नीचे से छिद्रवाले घट और ३. चलनी के समान श्रोताओं में रहे परस्पर अन्तर को समझने के लिए एक दृष्टांत इस प्रकार है
"एक समय की बात है-तीन श्रोता आपस में मिले। तीनों की सभा में प्रसंगवश उपदेश श्रवण की बात चल पड़ी। नीचे छिद्रवाले घट के समान श्रोता ने कहा - 'बन्धुओ! उपदेश श्रवण कर उसे धारण करना भी एक प्रकार का परिग्रह है। अतएव मैं जब तक आचार्यश्री व्याख्यान स्थल पर उपदेश सुनाते हैं, तभी तक मैं उसे स्मरण रखता हूँ। परन्तु ज्यों ही व्याख्यान स्थल से उठता हूँ, सब कुछ वहीं बिसर जाता हूँ। अपने मस्तिष्क में कुछ भी संग्रहित नहीं रखता।' ___ चलनी की उपमा वाले श्रोता ने कहा - 'बन्धु! गर्व न करो। तुम तो जहाँ तक व्याख्यान स्थल में बैठे रहते हो, तब तक उस उपदेश का मस्तिष्क में परिग्रह किये रहते हो, पर मैं इधर सुनता हूँ और उधर बिसारता जाता हूँ। अतएव मैं तुम से अधिक श्रेष्ठ हूँ।'
मुद्गशैल की उपमा वाले श्रोता ने कहा - 'बन्धुओ! सुनिये, आप दोनों अब तक अपरिग्रह की मात्र साधना करने वाले हैं, पर मैं इस विषय में सिद्ध हूँ। मैं अपने में उपदेश का एक अक्षर भी प्रविष्ट नहीं होने देता। अतएव आप दोनों मिलकर भी मेरी समता नहीं कर सकते।' दोनों ने उसकी श्रेष्ठता स्वीकार की, वैसा प्रस्ताव पारित किया और सभा समाप्त हो गई।
___ कुछ श्रोता इसके विपरीत तापसों के कमण्डल के समान ग्राही होते हैं। जैसे - कमण्डल में जल भरने पर उसमें से जल का एक बिन्दु भी बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार कुछ श्रोता ऐसे होते हैं कि वे आचार्यश्री द्वारा दिया हुआ सूत्रार्थ, पूर्णतया धारण किये रहते हैं। ऐसे ग्राही श्रोता, धारणा की दृष्टि से एकांत पात्र हैं।
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