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घट का दृष्टांत
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ज्ञान सुनकर १. गेहूँ उत्पत्ति रूप साधुत्व ग्रहण करते हों या २. धान्य अंकुर रूप श्रावक व्रत ग्रहण करते हो या ३ बीज रूप सम्यक्त्व ग्रहण करते हों अथवा ४. तृणरूप मार्गानुसारित्व उत्पन्न करते हों या ५. कम से कम कोमलता (यथाभद्रकता) प्राप्त करते हों और ६. ज्ञान को टिकाते हों, तो उन्हें ज्ञान देना चाहिए।
२. घट का दृष्टान्त घड़े छह प्रकार के होते हैं। यथा -
१. कुछ घड़े अभी-अभी पके हुए नये होते हैं। वे किसी भी प्रकार की गंध से रहित होते हैं। उनमें यदि वारंवार जल भरा जाय, तो चौथीवार से वह जल, उसी रूप में रहता है (विकृत नहीं होता) और पीने वालों को भी उस रूप में मिलता है। उसी प्रकार कुछ बाल अवस्था वाले परन्तु उपशांत मोह वाले शिष्य होते हैं। वे किसी भी प्रकार के इह पूर्व भव में कुसंस्कार से रहित होते हैं। उनमें श्रुतज्ञान रूप जल भरा जाय, तो वह उसी रूप में-सम्यक् परिणमता है (मिथ्या रूप में नहीं परिणमता) और उससे अन्य पिपासुओं को भी यथावस्थित श्रुतज्ञान रूप जल मिलता है। अतएव ऐसे सुपरिणामी श्रोता, श्रुतज्ञान रूपी जल के लिए पात्र हैं। - २. कुछ घड़े वर्षों पहले के पके हुए - पुराने होते हैं, उनमें कुछ घड़े गंध रहित होते हैं। जिनमें कभी कोई गंध वाली वस्तु नहीं रखी गयी हो, ऐसे गंध रहित पुराने घड़ों में भी जल भरा जाय, तो उसमें भी वह जल अपने रूप में रहता है और पीने वालों को भी उसी रूप में पीने को मिलता है। उसी प्रकार कुछ युवक और वृद्ध होते हैं, जो किसी भी प्रकार के धर्म-अधर्म के संस्कार से रहित होते हैं, जिन्हें नास्तिकों का, अन्यमतियों का, या शिथिलाचारियों का सम्पर्क नहीं मिला होता है। उनमें यदि श्रुतज्ञान रूप जल भरा जाय, तो उनमें भी प्रायः वह सम्यक् रूप में परिणमता है, मिथ्यारूप में नहीं परिणमता। अतएव ऐसे सुपरिणामी श्रोता भी श्रुतज्ञान के पात्र हैं।
३. कुछ पुराने घड़े निकाचित दुर्गन्ध वाले होते हैं। घड़े में जब तीव्र दुर्गन्ध वाले-लहसुन मदिरा आदि पदार्थों से पूर्ण भर कर बहुत वर्षों तक रक्खे जाते हैं, तब वे घड़े वैसी गंध वाले बन जाते हैं। उन घड़ों में यदि जल भरा जाय, तो उनकी उस दुर्गन्ध से वह जल ही दुर्गन्धित हो जाता है और पीने वालों को दुर्गन्धित जल पीने को मिलता है। उसी प्रकार कुछ युवक और वृद्ध होते हैं जो निकाचित नास्तिक संस्कार वाले या अन्य धर्म संस्कार वाले अथवा विकृत धर्म संस्कार वाले होते हैं। जिन्हें नास्तिकों का अधिकतम संसर्ग रहता है। प्रायः वे निकाचित नास्तिक संस्कार वाले बन जाते हैं। जिन्हें अन्य दर्शनियों का तीव्रतम संसर्ग रहता हैं, वे निकाचित अन्य धर्म संस्कार
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