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[ मुहूर्तराज प्रतिष्ठा में रेखादातृ एवं भंगद ग्रह, शुक्र की पृष्ठस्थता आदि उपयोगी अंशों का सविवेचन, संकलन करके श्रीमद् गुरुदेव के असीमानुग्रह से निर्विघ्नतया ग्रन्थ पूर्ति करते-करते श्रीमच्चतुर्विंशति तीर्थंकरों के च्यवन नक्षत्रों, उनकी राशियों योनियों तथा उनके नक्षत्र गणों, उनके लाच्छनों व अष्टमार्गलिक वस्तुनामों का उल्लेख करके एतद्ग्रन्थसंग्रहकर्ता श्रीमुनिवर श्री गुलाबविजयजी ने ग्रन्थ का मंगलान्तरूपेण समपान किया है।
प्रकरण पंचक से विराजित यह “मुहूर्तराज” अतीव उपादेय हो गया है तथा मुहूर्तों के सम्बन्ध में इतना सुस्पष्ट निर्देश देता है कि एतदाधार से निर्दोष मुहूर्त ज्ञात करने में किसी प्रकार का विशेष आयास नहीं करना पड़ता। इसमें निहित मूलश्लोकों एवं उद्धरणांशों की भाषा भी सरल संस्कृतमयी होने से शीघ्र ही हृदयङ्गम हो जाती है।
संकलनकर्ता मुनिवर को इस ग्रन्थ के संकलनार्थ ज्योतिर्ग्रन्थों के अनवरत अवलोकन व मनन में, विषय के उपक्रम विस्तारादि संयोजन में एवं तदुपरान्त लिपिबद्ध करने में कितना आयास करना पड़ा होगा इसे तो वे अहोरात्र ही प्रत्यक्षरूपेण जानते हैं जिनमें यह महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित हुआ; उस आयास का अनुमान सहृदयजन अवश्य ही लगा सकते हैं।
यद्यपि मुहूर्त ज्यौतिष से सम्बन्ध अनेकानेक संकलन ग्रन्थ वर्तमान हैं तथापि संक्षेपतः जीवन के नितान्त उपयोगी, जन सामान्य के लिए निरन्तर अपेक्षणीय मौहूर्तिक क्षणों को जितना झटिति इस संकलन का अवलम्बन कर ज्ञात किया जा सकता है उसे तो सुज्ञ, विज्ञ एवं विचारशील विद्वज्जन स्वयमेव प्रत्यक्ष रूपेण ज्ञात करेंगे एवं साथ ही इसकी उपादेयता तथा सरलतया सुबोध्यता का पता लगा सकेंगे। तथा च इस ग्रन्थ को सर्वाङ्गीणरूपेण उपादेय एवं उपयोगी बनाने के लिए अन्त में चार परिशिष्टों का भी समावेश किया गया है।
अन्त में प्रस्तुत ग्रन्थ के हिन्दी टीकाकार ज्यौतिष विशारद मुनिप्रवर श्री जयप्रभविजयजी श्रमण ने इस ग्रन्थ के सम्पादन का कार्य मुझे सौंपा जिसे मैंने अपना परम सौभाग्य मानकर इस ग्रन्थ के मूल श्लोकों की संस्कृत में व्याख्या की एवं सारणियों व परिशिष्टों का संशोधन पूर्वक संकलन किया। मैं अपने पूज्य पितृप्रवर ज्योतिर्विद् पं. श्री गौरीशंकरजी के शुभाशीर्वाद से इस ज्ञानाराधना को करने में कितना सफल हो सका हूँ, इसका निर्णय तो सुहृदय पाठक ही करेंगे। वस्तुतः मैं स्वयं को तभी धन्य एवं स्वकीय श्रम को सार्थक मानूंगा यदि ज्योतिर्जिज्ञासुओं के लिए यह कार्य अल्पमात्रा में भी सन्तोषकारक एवं उपादेय बन सकेगा। __श्री मुनिवर्य उपाध्याय श्री गुलाब विजयजी द्वारा संकलित एवं श्री राजेन्द्र हिन्दी टीकाकार ज्योतिष विशारद मुनिप्रवर श्री जयप्रभ विजयजी श्रमण की हिन्दी टीका से युक्त यह ज्योतिर्विद्या का ज्योतिः स्तम्भरूप संकलन सदैव जन-जन का मनोहारी एवं मार्ग प्रशस्तिकारी हो इसी मंगलमयी कामना के साथ। किं सुज्ञेषु बहुता। इति शम्।
___ विद्वद्वन्द वशंवदंपं. गोविन्दराम श्रीगौरीशंकरजी द्विवेदी
हरजी (जालौर) निवासी अभी आहोर ३०७०२९ (राज.)
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