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संसार-अनुप्रेक्षा अन्वयार्थः-[ बालोपि पियरचत्तो परउन्छि?ण बढदे दुहिदो ] ( गर्भसे निकलनेके बादमें ) बाल अवस्थामें ही माता पिता मर जांय तब दूसरोंकी झूठनसे बड़ा हुआ [ एवं जायणसीलो महादुक्खं कालं गमेदि ] इस तरह भीख मांग मांग कर उदरपूर्ति करके महादुःखी होता हुआ काल बिताता है ।। अब कहते हैं कि यह पापका फल है
पावेण जणो एसो, दुकम्म-वसेन जायदे सव्यो।
पुणरवि करेदि पावं, ण य पुगणं को वि अज्जेदि ॥४७॥ अन्वयार्थः-[ एसो सब्यो जणो पावेण दुकम्मवसेन जायदे ] ये लौकिक जन सबही पापके उदयसे असाता वेदनीय, नीच गोत्र, अशुभनाम आयु आदि दुष्कर्मके वशसे ऐसे दुःख सहता है [ पुणरवि पावं करेदि ] तो भी फिर पाप ही करता है [ण य पुण्णं को वि अज्जेदि ] पूजा, दान, व्रत, तप ध्यानादि लक्षण पुण्यको पैदा नहीं करता है, यह बड़ा अज्ञान है ।
विरलो अज्जदि पुण्णं, सम्मादिट्ठी वएहि संजुत्तो।
उवसमभावे सहियो, जिंदणगरहाहि संजुत्तो ॥४८॥ अन्वयार्थ:-[ सम्मादिट्ठी वरहिं संजुत्तो ] सम्यग्दृष्टि कहिये यथार्थश्रद्धावान् और मुनि श्रावकके व्रतोंसे संयुक्त [उवसमभावे सहियो] उपशम भाव कहिये मन्द कषायरूप परिणाम सहित [णिंदणगरहाहि संजुत्तो ] निंदन कहिये अपने दोष याद कर पश्चात्ताप करना, गर्हण कहिये अपने दोष गुरुके पास जाकर प्रकट करना इन दोनोंसे युक्त [विरलो पुण्णं अजदि ] विरला ही ऐसा जीव है जो पुण्य प्रकृतियोंका बन्ध करता है। अब कहते हैं कि पुण्यवान्के भी इष्ट वियोगादि देखे जाते हैं
पुण्णजुदस्स वि दीसइ, इट्टविनोयं अणिडसंजोयं ।
भरहो वि साहिमाणो, परिजिओ लहुय-भायेण ॥४६॥ अन्वयार्थ:-[ पुण्णजुदस्स वि इट्ठविओयं अणिट्ठसंजोयं दीसइ ] पुण्य उदय सहित पुरुषके भी इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग देखा जाता है [ साहिमाणो भरहो वि लहुयभायेणे परिजिओ ] अभिमान सहित भरत चक्रवर्ती भी छोटे भाई बाहुबलीसे पराजित हुआ।
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