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बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा अब कहते हैं कि ऐसे क्रूर परिणामी जीव नरकमें जाते हैं
सो तिव्वअसुहलेसो, णरये णिवडेइ दुक्खदे भीमे । तत्थ वि दुक्खं भुजदि, सारीरं माणसं पउरं ॥२८॥
अन्वयार्थः-[ सो तिव्वअसुहलेसो दुक्खदे भीमे गरये णिवडेइ ] वह क्रूर तिर्यंच तीव्र अशुभ परिणाम और अशुभ लेश्या सहित मरकर दुःखदायक भयानक नरक में गिरता है [ तत्थ वि सारीरं माणसं पउरं दुक्खं भुजदि ] वहाँ शरीरसम्बन्धी तथा मनसम्बन्धी प्रचुर दुःख भोगता है ।
अब कहते हैं कि उस नरकसे निकल तिर्यंच होकर दुःख सहता है
तत्तो णीसरिद्रणं, पुणरवि तिरिएसु जायदे पावो ।
तत्थ वि दुक्खमणंतं, विसहदि जीवो अणेय विहं ॥२८६॥
अन्वयार्थः-[तत्तो णीसरिदूणं पुणरवि तिरिएसु जायदे] उस नरकसे निकलकर फिर भी तिर्यंचगति में उत्पन्न होता है [ तत्थ वि पावो जीवो अणेयविहं अणंतं दुक्खं विसहदि ] वहाँ भी पापरूप जैसे हो वैसे यह जीव अनेकप्रकारका अनन्त दुःख विशेषरूप से सहता है।
अब कहते हैं कि मनुष्यपना पाना दुर्लभ है सो भी मिथ्यात्वी होकर पाप उत्पन्न करता है
रयणं चउप्पहे पिव, मणुअत्तं सुट्ठ दुल्लहं लहिय । मिच्छो हवेइ जीवो, तत्थ वि पावं समज्जेदि ॥२६॥
अन्वयार्थः- [ रयणं चउप्पहे पिव मणुअरा सुट्ठ दुल्लहं लहिय ] जैसे चौराहेमें पड़ा हुआ रत्न बड़े भाग्यसे हाथ लगता है वैसे ही तिर्यंचसे निकलकर मनुष्यगति पाना अत्यन्त दुर्लभ है [ तत्थ वि जीवो मिच्छो हवेइ पावं समज्जेदि ] ऐसा दुर्लभ मनुष्यशरीर पाकर भी मिथ्या दृष्टि हो पाप ही करता है ।
भावार्थः-मनुष्य भी होकर, म्लेच्छखंड आदिमें तथा मिथ्या दृष्टियोंकी संगति में उत्पन्न होकर पाप ही करता है।
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