Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kartikeya Swami, Mahendrakumar Patni
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 188
________________ धर्मानुप्रेक्षा १६९ गिहवावारं चत्ता, रत्तिं गमिऊण धम्मचिंताए । पच्चूसे उद्वित्ता, किरियाकम्मं च कादूण ॥३७४॥ सत्थठभासेण पुणो, दिवसं गमिऊण वंदणं किच्चा । रत्तिं णेदुण तहा, पच्चूहे वंदणं किच्चा ॥३७५॥ पुज्जणविहिं च किच्चा, पत्तं गहिऊण णवरि तिविहं पि । भुजाविऊण पत्तं, भुजंतो पोसहो होदि ॥३७६॥ अन्वयार्थः-[ सत्तमितेरसिदिवसे अवरण्हे जिणभवणे जाइऊण ] सप्तमी त्रयोदशीके दिन दोपहर के बाद जिन चैत्यालय में जाकर [ किरियाकम्मं किच्चा उववासं चउविहं गहिय ] अपरालके समय सामायिक आदि क्रिया कर्म कर चार प्रकारके आहारका त्याग कर उपवास ग्रहण करता है [ गिहवावारं चत्ता धम्मचिंताए रति गमिऊण ] घरके समस्त व्यापारको छोड़कर धर्मध्यानपूर्वक तेरस और सप्तमीकी रात्रि बिताता है [ पच्चहे उद्वित्ता किरियाकम्मं च कादण ] सबेरे उठकर सामायिक आदि क्रिया कर्म करता है [ सत्थव्भासेण पुणो दिवसं गमिऊण वंदणं किच्चा ] अष्टमी चौदसका दिन शास्त्राभ्यास धर्मध्यानपूर्वक बिताकर अपरालके समय सामायिक आदि क्रिया कर्म कर [ रत्ति णेदण तहा पच्चसे वंदणं किच्चा ] रात्रि वैसे ही धर्मध्यानपूर्वक बिताकर नौमो पूर्णमासीके सबेरेके समय सामायिक वन्दना कर [ पुज्जणविहिं च किच्चा पत्तं गहिऊण णवरि तिविहं पि] पूजन विधान कर तीन प्रकारके पात्रोंको पडगाह कर [ मुजाविऊण पत्तं भुजतो पोसहो होदि ] उन पात्रोंको भोजन कराकर आप भोजन करता है उसके प्रोषध होता है। ___भावार्थः-पहिले शिक्षाव्रतमें प्रोषधकी विधि कही थी सो यहाँ भी जानना चाहिये । गृहव्यापार भोग उपभोगकी सामग्री सबका त्याग कर एकान्तमें जा बैठे और सोलह पहर धर्मध्यानमें बितावे । यहाँ विशेष इतना जानना चाहिये कि वहाँ व्रतमें सोलह पहरके कालका नियम नहीं कहा था और अतिचार भी लगते थे परन्तु यहाँ प्रतिमाकी प्रतिज्ञा है इसमें सोलह पहरका उपवास नियमपूर्वक अतिचार रहित करता है। इसके पाँच अतिचार हैं-जो वस्तु जिस स्थान पर रक्खी हो उसका उठाना, रखन तथा सोने बैठनेका संथारा करना ( आसन आदि बिछाना ) सो बिना देखे बिना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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