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संसार-अनुप्रक्षा
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पुत्रको उत्तर दिशाके दरवाजे पर छोड़ दिया। वहांसे उसको साकेतपुर के एक सुभद्र नामके बिणजारेने उठाकर अपनी सुव्रताको सौंप दिया और उसका नाम धनदेव रक्खा । पूर्वोपार्जित कर्मके वशसे धनदेवका कमलाके साथ विवाह हुआ । पति पत्नि हुए। बाद में धनदेव व्यापारके लिये उज्जयनी नगरीमें गया । वह वहां वसन्ततिलका वेश्या पर मोहित हो गया । उसके संयोगसे वसन्ततिलकाके पुत्र हुआ, जिसका नाम 'वरुण' रक्खा गया । फिर एक दिन कमलाने सम्बन्ध पूछे । मुनिराजने इनके सब सम्बन्ध बतलाये |
इनके पूर्वभवका वर्णन
इसी उज्जयनी नगरीमें सोमशर्मा नामका ब्राह्मण रहता था । उसके काश्यपी नामकी स्त्री थी । उनके अग्निभूत सोमभूत नामके दो पुत्र हुए । वे दोनों कहीं से पढ़कर आते थे । उन्होंने मार्ग में जिनदत्तमुनिसे उनकी माताको जो जिनमती नामकी आर्यिका थी, उनका शरीर समाधान ( कुशलता ) पूछते हुए देखो और जिनभद्र नामक मुनिको सुभद्रा नामक आर्यिका जो उनकी पुत्रवधु थी सो शरीर समाधान पूछती देखी । वहाँ उन दोनों भाइयोंने हंसी की कि तरुणके तो वृद्धा स्त्री और वृद्धके तरुणी स्त्री है परमेश्वरने विपरीत योग मिलाया । इसप्रकारकी हंसीके पापसे सोमशर्मा तो वसन्ततिलका हुई और अग्निभूत सोमभूत दोनों भाई मरकर वसन्ततिलकाके पुत्र पुत्री युगल हुए । उनके कमला और धनदेव नाम रक्खे गये । काश्यपी ब्राह्मणी, वसन्ततिलकाके धनदेवके संयोगसे वरुण नामका पुत्र हुआ । इस तरह सब सम्बन्धों को सुनने से कमलाको जातिस्मरण हो गया । तब वह उज्जयिनी नगरी में वसन्ततिलक के घर गई । वहां वरुण पालने ( भूले ) में झूल रहा था । उसे देखकर कमला कहने लगी कि हे बालक ! तेरे साथ मेरे छह नाते हैं सो सुन
१–मेरा पति धनदेव, उसके संयोग से तू हुआ इसलिये मेरा भी तू ( सौतेला) पुत्र है ।
२-- धनदेव मेरा सगा भाई है, उसका तू पुत्र है इसलिये मेरा भतीजा भी है । ३ -- तेरी माता वसंततिलका, वह ही मेरी माता है इसलिये तू मेरा भाई भी है । ४- - तू मेरे पति धनदेवका छोटा भाई है इसलिये मेरा देवर भी
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