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कार्तिकेयानुप्रेक्षा अन्वयार्थः- [जदि हि अंसविहीणं अणुपरिमाणं तच्चं मण्णदे ] यदि एक वस्तु सर्वगत व्यापक न मानी जाय और अंशरहित अणुपरिमाण तत्त्व माना जाय [ तो संबंधाभावो ततो वि ण कजसंसिद्धि ] तो दो अंशके तथा पूर्वोत्तर अंशके सम्बन्धके अभावसे अणुमात्र वस्तुसे कार्य की सिद्धी नहीं होती है ।
भावार्थः-निरंश क्षणिक निरन्वयी वस्तुके अर्थक्रिया नहीं होती है, इसलिये सांश नित्य अन्वयी वस्तु कथंचित् मानना योग्य है ।
अब द्रव्यके एकत्वपनेका निश्चय करते हैं-..
सवाणं दवाणं, दवसरूवेण होदि एयत्तं । णियणियगुणभेएण हि, सव्वाणि वि होंति भिण्णाणि ॥२३६।।
अन्वयार्थः-[ सव्वाणं दव्याणं दव्वसरूवेण एयत् होदि ] सब ही द्रव्यों के द्रव्यस्वरूपसे तो एकत्व होता है [ णियणियगुणमेएण हि सव्वाणि वि भिण्णाणि होति ] और अपने अपने गुणके भेदसे सब द्रव्य भिन्न भिन्न हैं।
भावार्थ:-द्रव्यका लक्षण उत्पाद व्यय धोव्यस्वरूप सत् है इस स्वरूपसे तो सबके एकत्व है और अपने अपने गुण चेतनत्व जड़त्व आदि भेदरूप हैं इसलिये गुणों के भेदसे सब द्रव्य भिन्न भिन्न हैं तथा एक द्रव्यको त्रिकालवर्ती अनन्त पर्यायें हैं सो सब पर्यायों में द्रव्य स्वरूपसे तो एकता ही है जैसे चेतनकी पर्यायें सब ही चेतन स्वरूप हैं, पर्यायें अपने अपने स्वरूपसे भिन्न भी हैं, भिन्न कालवर्ती भी हैं, इसलिये भिन्न भिन्न भी कहते हैं। किन्तु उनके प्रदेश-भेद तो कभी भी नहीं है इसलिये एक ही द्रव्यकी अनेक पर्यायें होती हैं इसमें विरोध नहीं आता।
अब द्रव्यके गुणपर्यायस्वभावपना दिखाते हैं
जो अत्थो पडिसमयं, उप्पादव्वयधुवत्तसम्भावो । गुणपज्जयपरिणामो, सो सत्तो भएणदे समये ॥२३७॥
अन्वयार्थः- [जो अस्थो पडिसमयं उप्पादयधुवत्तसब्भावो] जो अर्थ (वस्तु) समय समय उत्पाद व्यय ध्र वत्वके स्वभावरूप है [ सो गुणपजयपरिणामो सचो समये भण्णदे ] सो गुणपर्यायपरिणामस्वरूप सत्त्व सिद्धान्त में कहते हैं ।
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