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लोकानुप्रेक्षा अन्वयार्थ:-[ वारसवास वियक्खे ] द्वीन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष को है [ एगुणवण्णा दिणाणि तेयक्खे ] त्रीन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु उनचास (४९) 'दिनकी है [ चउरक्खे छम्मासा ] चतुरिन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु छह मासकी है [ पंचक्खे तिण्णि पल्लामि ] पचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु भोगभूमिकी अपेक्षा तीन पल्यकी है।
अब सब ही तिर्यंच और मनुष्यों की जघन्य आयु कहते है
सब्बजहणणं आऊ, लद्धिअपुण्णाण सव्वजीवाणं ।
मज्झिमहीणमुहुत्तं, पज्जत्तिजुदाण णिक्किट्ठ॥१६४॥
अन्वयार्थः-[ लद्धिअपुष्णाण सव्वजीवाणं ] लब्ध्यपर्याप्तक सब जीवोंकी [ सव्वजहण्णं आऊ ] जघन्य आयु [ मज्झिमहीणमुहुत्तं ] मध्यमहीन मुहूर्त है ( यह क्षुद्रभवमात्र जानना चाहिये एक उस्बासके अठारहवें भाग मात्र है ) [ पजत्तिजदाण णिक्किटुं ] लब्ध्य पर्याप्तक ( कर्मभूभि के तिर्यंच मनुष्य सबही पर्याप्त ) जीवोंकी जघन्य आयु भी मध्यमहीन मुहूर्त है ( यह पहिलेसे बड़ा मध्यअन्तर्मुहूर्त है )।
अब देवनारकियोंकी आयु कहते हैं--
देवाण णारयाणं, सायरसंवा हवंति तेत्तीसा। उक्किट्ठच जहणणं, वासाणं दस सहस्साणि ।।१६५॥
अन्वयार्थ:-[ देवाण णारयाणं ] देवोंकी तथा नारकी जीवों की [ उक्कि₹1 उत्कृष्ट आयु [ तेतीसा ] तेतीस [ सायरसंखा हवंति ] सागरको है [ जहण्णं वासाणं दस सहस्साणि ] और जघन्य आयु दस हजार वर्ष की है ।
भावार्थ:-यह सामान्य देवोंकी अपेक्षा कथन है विशेष त्रिलोकसार आदि ग्रन्थोंसे जानना चाहिये।
अब एकेन्द्रिय आदि जीवोंकी शरीरकी अवगाहना उत्कृष्ट व जघन्य दस गाथाओं में कहते हैं---
अंगुलअसंखभागो, एयक्खचउक्कदेहपरिमाणं । जोयणसहस्समहियं, पउमं उक्कस्सयं जाण ॥१६६॥
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