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लोकानुप्रेक्षा और [ सव्वबंधाण वि लओ ] प्रकृति स्थिति अनुभाग सब बन्धोंका लय ( एकरूप होना ) [ सो] सो [ जीवस्स ] जीवके [ बंधो होदि ] प्रदेशबंध होता
अब सब द्रव्योंमें जीवद्रव्य ही उत्तम परमतत्त्व है ऐसा कहते हैं
उत्तमगुणाण धामं, सव्वदव्वाण उत्तमं दव्वं । तच्चाण परमतच्चं, जीवं जाणेह णिच्छयदो ॥२०४॥
अन्वयार्थः-[ उत्तमगुणाण धामं ] जीवद्रव्य उत्तम गुणोंका धाम ( स्थान ) : है, ज्ञान आदि उत्तमगुण इसी में हैं [ सव्वदव्याण उत्तमं दव्व ] सब द्रव्योंमें यह ही द्रव्य प्रधान है, सब द्रव्योंको जीव ही प्रकाशित करता है [ तच्चाण परमतच्चं जीवं ] सब तत्त्वोंमें परमतत्त्व जीव ही है, अनन्तज्ञान सुख आदिका भोक्ता यह ही है [ णिच्छयदो जाणेह ] इस तरहसे हे भव्य ! तू निश्चयसे जान ।
अब जीव ही के उत्तम तत्त्वपना कैसे है सो कहते हैं
अंतरतच्चं जीवो, बाहिरतच्चं हवंति सेसाणि ।
णाणविहीणं दव्वं, हियाहियं णेय जाणेदि ॥२०५॥ __ अन्वयार्थः-[ जीवो अंतरतच्चं ] जीव अतंरतत्त्व है [ सेसाणि बाहिरतच्चं हवंति ] बाकीके सब द्रव्य बाह्यतत्त्व हैं [ णाणविहीणं दव्वं ] वे द्रव्य ज्ञानरहित हैं [हियाहियं णेय जाणेदि ] और हेय-उपादेयरूप वस्तुको नहीं जानते हैं।
भावार्थ:-जीवतत्त्वके बिना सब शून्य हैं इसलिये सबका जाननेवाला तथा हेय-उपादेयका जाननेवाला जीव ही परम तत्त्व है ।
अब पुद्गल द्रव्यका स्वरूप कहते हैं
सव्वो लोयायासो, पुग्गलदव्वेहिं सव्वदो भरिदो।
सुहमेहिं बायरेहिं य, णाणाविहसत्तिजुत्तेहिं ॥२०६॥
अन्वयार्थः-[ सव्वो लोयायासो ] सब लोकाकाश [ णाणाविहसत्तिजरोहिं ] नाना प्रकारकी शक्तिवाले [ सुहमेहिं बायरेहिं य ] सूक्ष्म और बादर [ पुग्गलदव्वेहि सव्वदो भरिदो ] पुद्गलद्रव्योंसे सब जगह भरा हुआ है।
भावार्थ:-शरीर आदि अनेकप्रकारको परिणमन शक्ति युक्त सूक्ष्म बादर पुद्गलों से सब लोकाकाश भरा हुआ है।
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