Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 14
________________ कर्मग्रभ्य भाग बार ॥ ६५ ॥ ।। ६६ ।। बोए केवलजुयलं, संभं दाणाइलद्धि पण चरणं । तए सेसुवओगा, पण लद्धी सम्मविरइदुगं अप्राणमसिद्धत्ता, संजम लेसा कसायइवेया । मिच्छं तुरिए भव्वा, भव्यत्तजियत्त परिणामे 3 चउगई सोग, परिणामुदएहिं चउ सखइएहिं । उवसमजुहि वा चऊ. केवलि परिणामुदयखइए । ६७ ।। खयपरिणामे सिद्धा नराण पणजोगुवसमसेढीए । इय पर संनिवाइय, भेया वोसं असंभविणो मोहेब समो मीसो चजघासु अनुकम्मसु च धम्माइपारिणामिय, भावे बंधा उदइए वि I - L 19 ॥ ६८ ॥ सेसा । ।। ६६ ।। ।। ७० ।। ॥ ७१ ॥ संमाइचउलु तिग चउ, भावा च पणुव साम वसते । चउ खोणापुव तिमि, सेसगुणट्ठाणगमजिए संखिज्जेगमसंखं परित्तजुत्तनिपयज्यं तिविहं । एवमतं पि लिहा, जहन्नमज्जुवकसा सध्ये लहसंविज्यं बुच्चिय अक्ष परं मज्झिम जर गुरुभं । जंबूद्दोपमरणय, चपल्लपरूवणाइ इमं पल्लाणवद्वियसला, -ग पडिसलामा महासला मक्खा । जोयणसहसो गाढा, सवेइयंता सहिभरिया ता दोनुददिसु इविक कसरिसवं खिविय निट्टए पढमे । पढमं व तन्तं चिय पुणे भरिय तंनि तह खोणे ॥ ७४ ॥ खिप्पर सलागपल्ले, -गु सरिसवो इव सलागलवणेणं । पुना बोयो य तओ, पुठि पिद तमि उद्धरिए । ७५ ।। ।। ७२ ।। ॥ ७३ ॥

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