Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 12
________________ कर्मप्रभ्व भाग नार् पाणुपु दिवसा. थोवा दो संख णंत दो अहिया । अभवियर थोयता, सासण थोबोयसम संखा ॥४३॥ मीसा संखा वेग, असंखगुण खइथमिच्छ वु अनंता । संनियर योष णंसा - णहार थोवेधर असंखा ॥ ४४ ॥ सम्बजियठाण मिछे. सग सालणि पण अपजस भिद्गं । संभे सनी बुद्धिहो सेसेसु संनिपज्जत्तो ।। ४५ ।। मिच्छबुगअजइ जोगा - हारदुगुणा अपुन्यपणगे उ । मनव जनिमीति + ॥४॥ " साहारयुग यमते ते विउवाहारमीस वि इयरे । कम्मुरलदुगंताइम, मणवयण सयोगि न अजोगी ॥४७॥ तिअनाणबुवं साइम वुगे अजइ देसि नाणवंसतिगं । से मीसि मोसा समणा, जयाइ केवल अंतदुगे ॥ ४८ ॥ सासणभावे नाणं विजवगाहारगे उरलमिस्सं । नेहा हिगयं सुयमयं पि विसासाणो ४६ छ सय तेउलिगं इगि सुसुक्का अयोगि अहलेसा । बंधस्स मिच्छ अविरह कसायजोगति च ज हेऊ ॥५०॥ अभियमभिगहिया, मिनिबसिय हांस इयमणाभोगं । पणमिच्छ बार अविर, मणकरणानिय मुद्दकियवहो ॥ ५१ ॥ नव सोल कसाया पन र जोग इय उत्तरा उ सगबधा । seaण तिगुणेसु चतिदुपजओ बंधो चचमिच्छुमिच्छअविर, पडवइया सायसोलपणतीसा जोग विणु पिया - हारगजिनवज्जसेसाओ ।। ५२ ।। । ॥ ५३॥

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