Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 10
________________ कर्मग्रन्थ भाग चार ॥२५३॥ मणनागि सग जयाई, समयछे चउ दुन्नि परिहारे । केवलगि यो चरमा जयाह नव मद सुओहिदुगे ॥२१॥ अड उवरुमि च बेथगि, खइए इक्कार मिच्छतिरंग देते । सुमेथ सठाणं तेर- जोग आहार सुक्काए ।। २२ । अनि पढमदुगं, पढमतिलेसासु छ च्च दुसु सत्त । पढमंतिदुगअजया, अण्हारे मग्गणासु गुजा सच्चयरलीसअस, -च्चमोसपण वह विउध्वियाहारा । उरलं मीसा कम्मण, इम जोगा कम्मममहारे नरइणिदितसतणु - अचवलुनरनपुक साय संदुममे । संनिछलेसाहारगः - भवमहसुओहिदुगे सन्वे तिरित्थि अजयसारण - अनाग उबलम अभव्वमिन्द्रेसु । तेराहारडुगुणा, ते उरलदुगूण सुरनरए कम्बावरि ने सविजविदुग पंच इगिणे । छ असंति चरमवइजुय, ते विजयद्गुण चउ विगले कम्मुरलमोसविणु मण, - वइसमइयछे यच क्खु मणनाणे | उरलगकम्मादमं- तिममणवइ केवलदुर्गमि मणइरला परिहा, रिसुहुमि नबते उमीसि सविब्वा । देसेस बिउविदुगा, कम्मुरलमीस अहलाए ॥२॥ सिजनाण नाण गण व उ. दंसण बार जियलक्णुवओगा । विणु मणनाणकेवल, नव सुरतिरिनिरयअजएसु तसजोयसुक्का-हारनरपण दिसंनिभवि स | नयणेधरपणलेसा, कसाइ दस केवलदुगुणा ॥२६॥ ॥२७॥ ।। २८ ।। ॥३०॥ ॥२३॥ ।।२४।। ॥३१॥

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