Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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चौथा कर्मग्रन्थ मल ।
SANSARSHAN
मिजिणं जिसमग्गण, गुणठाणुवओगजोगले साओ। चंधप्पबहभावे, संखिज्जाई किमबि बुच्छं ॥१॥ इह सुहमखायरेगि, दिबितिचउअसंनिसंनिचिदी। अपजत्ता पज्जत्ता, कमेण च उदस जियद्वाणा
॥२॥ बायरअसंनिविगले, अपज्जि पढमबिय संनि अपजतं । अजयजुअ संनि पज्जे, सत्वगुणा मिच्छ सेसेसु ३३॥ अपजत्तछक्कि कम्मुर, लमोसजोगा अपज्जसंनीसु । ते सविउवमीस एसु तणुपज्जेसु उरलमन्ने
॥४॥ सध्वे संनि पजत्ते, उरलं सुहमे सभासु तं चउसु । बायरि सविउस्विदुर्ग, पजस निसु बार उवओगा ॥५॥ पजचरिविअसंनिसु, दर्दस द अनाण बससु चक्खुविणा सनिअपज्जे मणना,-णचनखुकेवलदुगविहगा
॥६॥ संनिदुमे द्रलेसअप,-ज्जबायरे पढम घर ति सेसेसु । सप्तट्ट बन्धुदीर ए, संतुक्या अट्ठ तेरससु ॥ ७ ॥ ससट्टछछेगबंधा, संतुदया सत्तअवत्तारि । सत्सदृछपंचद्गं, उदीरणा संनिपज्जप्ते
ነl गइइंगिए य काये, जोए ए फसायनाणेसु । संज़मवंसकलेसा,-भवसम्मे सनिआहारे
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