Book Title: Karmagrantha Part 4
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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॥१०॥
।। १२ ।
।। १३ ।।
सुरनरतिरिनिरयगई, इगबियतियचउपणिवि क्काया । भुजलजलणानिलवण, तसा य मणवपणत गुजरेगा dr नरिनिपुं सा, कसाय कोहमयमायलोम त्ति । मद्दमुयच हिमण केवल - विहंगमइसुअअनाथ सागारा सामाइछेक्सरिहर, रसुहायवेसजयजया । अचक्ओही. केवलदंसण अणागारा किण्हा नीला काऊ, तेऊ पम्हा या सुक्क मन्दियरा । वेगखइगुवसममि -च्हमीससासाण संनियरे आहारेयर मेया, सुरनरयविभगमइसुओ हिदुगे । सम्मत्तति पहा, सुक्कास झोस सगिं तमसं अपज्जजु,-- नरे सबायरअपज्ज टेकए । थावर इगिदि पदमा चड बार असन्ति दुबिगले दस चरम तसे अजया, हारगतिरितशुकसा यदुअनाणे | पतिले नाभवियर, - अचलुनपुमिच्छि सचे वि पजनी केवलयुग, - संजयमणनाणवेसमण मोसे । पण चरनपज्ज वयणे, तिय छ व पज्जियर चक्खूमि ॥ १७ ॥ श्रीनरणिदि चरमा, व अणहारे बु स ंनि छ अपजा । ते सहुमअप विणा, सासणि इसो गुणे वुच्छं एतिर उ सुरनरए, नरसंनियणिविभव्वतसि सच्चे । इगविगल भूदगवणे, दुदु एवं गइतसअभव्वे ॥ १६ ॥ देवतिकाय नम दस, लोभेषज अजय बुति अनाति ।
।।१५।३।
॥१६॥
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बारस अचक्खु 'इक्लुसु पढया अहवाई चरम पर ॥२०॥
कर्मग्रन्थ माग चार
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॥११॥
॥ १४॥
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