Book Title: Karmagrantha Part 2
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 15
________________ हर्गसिद्धात मानने का आधार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार पुरुषार्थ हैं। इनके बारे में अनेक चिन्तकों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से विचार व्यक्त किये हैं । जिनकी दृष्टि में यह दृश्यमान जगत ही सब कुष्ठ है, उन्होंने तो अर्थ और काम पुरुषार्थ को मुख्य माना और किसी न किसी प्रकार से सुस्त्र प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया। अतएव वे ऐसा कोई सिद्धान्त मानने के लिए बाध्य नहीं थे और न उत्सुक ही जो अच्छे-बुरे. जन्मान्तर या परलोक की प्राप्ति कराने वाला हो । यह पक्ष चार्वाकदर्शन-परम्परा के नाम से प्रख्यात हुआ। जिसका एकमात्र लक्ष्य है यावज्जीवेद् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा धृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ लेकिन इसके साथ ही यह चिन्तन भी व्यापक रहा है और आज भी है, जो दृश्यमान जगत के अतिरिक्त अन्य कोई श्रेष्ठ या कनिष्ठ लोक, मृत्यु के बाद जन्मान्तर की सत्ता भी स्वीकार करता है । अलएव धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ को भी स्वीकार किया गया। परलोक और पुनर्जन्म में सुखप्राप्ति धर्म और मोक्ष पुरुषार्थ माने बिना सम्भव नहीं है । उसका मन्तव्य है कि 'यदि कर्म न हों तो जन्म-जन्मान्तर, इहलोकपरलोक का सम्बन्ध ठीक से नहीं बैठ सकता है। अतएव पुनर्जन्म की

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