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गाथा - ६२, ६३
तिर्यंचद्विक और नीचगोत्र की अनुकृष्टि का विवेचन
गाथा - ६४
असचतुष्क की अनुकृष्टि का विवेचन
गाथा - ६५
तीर्थंकर नामकर्म की अनुकृष्टि विषयक संकेत अनुभाग की तीव्रता-मंदता विषयक सामान्य नियम
घातिकर्म और अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात की तीव्रता - मंदता का विवेचन
निवर्तनकंडक का लक्षण
गाथा - ६६
शुभ प्रकृतियों के अनुभाग की तीव्रता-मंदता
परावर्तमान प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता की विशेषता का निर्देश
गाथा - ६७
सातावेदनीय के अनुभाग की तीव्रता-मंदता असातावेदनीय के अनुभाग की तीव्रता-मंदता तिर्यंचगति के अनुभाग की तीव्रता - मंदता जसनामकर्म के अनुभाग की तीव्रता-मंदता स्थितिबंधविचार के अनुयोगद्वार
गाथा - ६८, ६९
चौदह जीवभेदों में स्थितिस्थानों का विवेचन जीवभेदों में संक्लेशस्थान
जीवभेदों में संक्लेशस्थानों के असंख्यात होने का कारण
जीवभेदों में स्थिति, संक्लेश और विशुद्धि स्थानों का प्रारूप
गाथा - ७०
ज्ञानावरणपंचक, दर्शनावरणनवक, अंत रायपंचक, असातावेदनीय की उत्कृष्टस्थिति
स्थिति के दो प्रकार
अबाधाकाल का नियम
स्त्रीवेद, मनुष्यद्विक, सातावेदनीय की उत्कृष्ट स्थिति
गाथा-७१
दर्शनमोहनीय, कषायमोहनीय, नोकषायमोहनीय प्रकृतियों की उत्कृष्टस्थिति और अवाधा काल
गाथा - ७२, ७३
स्थिर शुभपंचक, उच्चगोत्र, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन की उत्कृष्टस्थिति और अबाधाकाल मध्य के संस्थानों और संहननों की उत्कृष्ट स्थिति और अबाधाकाल
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सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, विकलत्रिक की उत्कृष्ट स्थिति और अबाधाकाल
नीचगोत्र और पूर्वोक्त से शेष रही नरकगति आदि नामकर्म की प्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति और अबाधाकाल देवायु, नरकायु की उत्कृष्ट स्थिति मनुष्यायु, तियंचाय की उत्कृष्ट स्थिति