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बंधनकरण
जवमझे ठाणाइं, असंखभागो उ सेसठाणाणं।
हेठम्मि होंति थोवा, उवरिम्मि असंखगुणियाणि ॥' . अर्थ--यवमध्य में अनुभागस्थान शेष स्थानों के असंख्यातवें भाग होते हैं तथा यवमध्य से नीचे के स्थान अल्प होते हैं और ऊपर असंख्यातगुणित होते हैं। __ इस प्रकार यवमध्यप्ररूपणा करने के अनन्तर अब स्पर्शना और अल्पबहुत्व प्ररूपणा करते हैं। स्पर्शना और अल्पबहुत्व प्ररूपणा
फासणकाला तीए, थोवो उक्कोसगे जहन्ने उ। . होइ असंखज्जगुणो, य उ कंडगे तत्तिओ चेव ॥४९॥ जवमज्झ कंडगोवरि, हेट्ठो जवमझओ असंखगुणो। कमसो जवमज्झुरिं, कंडगहेट्ठा य तावइओ ॥५०॥ जवमझवरि विसेसो, कंडगहेट्ठा य सहि चेव।
जीवप्पाबहुमवं, अज्झवसाणेसु जाणेज्जा ॥५१॥ ___ शब्दार्थ-फासणकालो-स्पर्शनाकाल, तीए- अतीतकाल में, थोवो-सबसे कम, उक्कोसगे-उत्कृष्ट स्थान में, जहन्ने उ- और जघन्य स्थान में तो, होइ-होता है, असंखेज्जगुणो-असंख्यात गुणा, य-और, उ-तो, कंडगे-कंडक में, तत्तिओ-उतना, चेव-ही।
जवमझ-यवमध्य स्थान का, कंडगोवरि-कंडक के ऊपर, हेट्ठो-नीचे के, जवमज्झओ-यवमध्य से, असंखगुणो- असंख्यात गुण, कमसो-क्रमशः, जवमझुरि- यवमध्य से ऊपर, कंडगहेट्ठा-कंडक से नीचे के, य-और, तावइओ-उतने ही।
जवमझुवरि-यवमध्य से ऊपर के, विसेसो-विशेषाधिक, कंडगहेट्ठा-कंडक के अधोवर्ती, य-और, सहि-समस्त स्थानों का, चेव-और इस प्रकार, जीवप्पाबहुं-जीवों का अल्पबहुत्व, एवं- इस तरह, अमवसाणेसु-अध्यवसायों में, जाणेज्जा-जानना चाहिये। --------
गाथार्थ--(एक जीव की अपेक्षा) अतीतकाल में उत्कृष्ट (द्विसामयिक स्थानों का) स्पर्शनाकाल सबसे कम है, उससे जघन्य (अर्थात् आद्य चतुःसामयिक) स्थान का स्पर्शनाकाल असंख्यात गुणा है । उससे कंडक में ( उत्तरवर्ती चतुःसामयिक ) स्थानों का स्पर्शनाकाल उतना ही अर्थात् तुल्य है।
उस यवमध्य रूप अष्टसामयिक स्थान का तथा कंडक के उपरिवर्ती त्रिसामयिक स्थान का तथा यवमध्य के पूर्ववर्ती सप्त, षट् और पंच सामयिक स्थानों का स्पर्शनाकाल अनुक्रम से असंख्यात गुणा है। उससे कंडक के पूर्ववर्ती और यवमध्य के उत्तरवर्ती सप्त, षट् और पंच सामयिक स्थानों का स्पर्शनाकाल तुल्य है। १. पंचसंग्रह, बंधनकरण गाथा ६७