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परिशिष्ट
२. अशुभ प्रकृतियों का जघन्य स्थितिस्थान से आरंभ कर उत्तरोत्तर ऊपर-ऊपर के क्रमानुसार उत्कृष्ट स्थितिस्थान में अनन्तगुण-अनन्तगुण अनुभाग होता है। ... इस प्रकार सामान्य से तीव्रता-मंदता का नियम बतलाने के पश्चात असत्कल्पना के प्रारूप द्वारा अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता को स्पष्ट करते हैं। ...
अपरावर्तमान ५५ अशुभ प्रकृतियों को तीव्रता-मंदता (आवरणद्विक १४, मोहनीय २६, अन्तराय ५, अशुभवर्णादि ९, उपघात १-५५)
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तीव्रता-मंदता के अयोग्य निवर्तन कंडक
जघन्य अनु. बल्प. उससे ..
अनतगुण : ""
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उत्कृष्ट
अन.अनं.गण
उससे
-१० -११
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स्थितियां कंडक प्रमाण
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स्पष्टीकरण गाथा ६५-६६ के अनुसार ___१. अभव्यप्रायोग्य (अन्तःकोडाकोडी रूप) जघन्य स्थितिस्थान तीव्रता-मंदता के अयोग्य हैं । जिन्हें प्रारूप में १ से ८ तक के अंक द्वारा बताया है।
२. निवर्तनकण्डक की प्रथम स्थिति में.. जघन्य अनुभाग से जघन्य स्थिति में उत्तरोत्तर अनुभाग अनन्तगण है। जिसे प्रारूप में ९ से १२ तक के अंक द्वारा बताया है।
___३. तदनन्तर कण्डक से ऊपर प्रथम स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में अंक १२ के सामने ९ का अंक देकर बताया है।
४. इसके बाद कण्डक से ऊपर द्वितीय स्थिति में जघन्य अनभाग अनन्तगुणा है। जिसे प्रारूप में १३ के अंक से बताया है।