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परिशिष्ट
३६७
तिर्य चविक और नीचगोत्र की अनुकृष्टि का प्रारूप
स्थानिस्थान
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अनुः बंधाज.
नरकमान
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तानि अन्यानि च
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(अनुकृष्टि समाप्त)
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तदेक देश और मन
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स्पष्टीकरण गाथा ६२, ६३ के अनुसार १. तिर्यंचद्विक और नीचगोत्र में तीन प्रकार की अनुकृष्टि होती है(अ) 'तदेकदेश और अन्य'-जिसे अभव्य प्रा. ज. स्थान से नीचे के स्थान बतानेवाले १ से ६ तक के अंक द्वारा
बताया है। (आ) 'तानि अन्यानि च'-अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के योग्य सागरोपम शतपृथक्त्व स्थितियों में
'तानि अन्यानि च' इस क्रम से जानना, जिसे ७ से १६ तक के अंक द्वारा बताया है। (इ) 'तदेकदेश और अन्य'-इसके आगे उत्कृष्ट स्थितिस्थान पर्यन्त जानना। जिसे १७ से २२ तक के अंक
द्वारा स्पष्ट किया है।