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कण्डक प्रमाण स्थितियां
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स्पष्टीकरण गाया ६७ के अनुसार
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१. परावर्तमान शुभ प्रकृतियों की उत्कृष्टस्थिति का जघन्य अनुभाग स्तोक है जिसे प्रारूप में ९० के अंक से बतलाया है । इसी प्रकार एक समय कम, दो समय कम यावत् सागरोपम शतपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति का जधन्य अनुभाग पूर्वोक्त प्रमाण ही जानना अर्थात् स्तोक जानना। जिसे प्रारूप में ८९ के अंक से लेकर ५१ तक के अंक तक बताया है।
२. उससे ( सागरोपम शतपृथक्त्व से भी नीचे अनुभाग अनन्तगुण एक भाग हीन कण्टक के असंख्येय भाग
तक जानना ।
३. यहां असत्कल्पना से प्रत्येक कण्डक में १० संख्या समझना चाहिये इस नियम से एकभागहीन ause के असंख्येय भाग की ७ संख्या ली है। जिसे प्रारूप में ५० से ४४ तक के अंक द्वारा बतलाया है। एक भाग अवशेष रहा, उसके ४३,४२,४१ ये तीन अंक बतलाये हैं ।
४. असंख्येयभागहीन (संख्येयभागहीन) शेष असंख्येयभाग स्थितियों की 'साकारोपयोगी' संज्ञा है। ५. उसके बाद उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है जिसे प्रारूप में ४४ के अंक के सामने आने वाले ९० के अंक से बतलाया है । ये स्थितियां भी कण्डकमात्र होती हैं । इसलिये ९० से ८१ के अंक तक की दस संख्या को कण्डक जानना ।
६. इसके बाद जघन्य अनुभाग जहां से कहकर निवृत्त हुए थे, वहां से नीचे का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ४३ के अंक से बतलाया है ।
७. इसके पश्चात् उत्कृष्ट स्थिति का अनुभाग कण्डक प्रमाण अनन्तगुण है, जिसे ८० से ७१ अंक तक बतलाया है ।
८. इसके बाद पुनः जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ४२ के अंक द्वारा बतलाया है ।
९. इसके बाद पुन: उत्कृष्ट स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण कण्डकमात्र तक जानना, जिसे ७० से ६१ तक के अंक द्वारा बतलाया है । पुनः जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे प्रारूप में ४१ के अंक से बतलाया है ।
१०. इसके बाद उत्कृष्ट स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग कण्डकप्रमाण अनन्तगुण है, जिसे ६० से ५१ तक के अंक द्वारा बतलाया है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट अनुभाग ९० से ५१ तक सागरोपम शतपृथक्त्व प्रमाण हैं ।
११. इसके बाद पुनः प्रागुक्त जघन्य अनुभाग से नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है जिसे ४० के अंक से बतलाया है । इसके बाद उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा हैं, जिसे ५० के अंक से बतलाया है। इसी प्रकार जघ. अनु. तब तक कहना चाहिये, जब तक जघन्य अनुभाग की जघन्य स्थिति न आ जाये । ये परस्पर आक्रान्त स्थितियां हैं, अतः अब जघन्य ३९,