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परिशिष्ट
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११. उसके बाद जिस स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग कहकर निवृत्त हुए थे, उससे नीचे के स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ३१ के अंक से प्रदर्शित किया है ।
. १२. उससे भी पुनः पूर्वोक्त कण्डक (५९-५०) से नीचे कण्डक प्रमाण स्थितियों का अनुक्रम से नीचेनीचे उतरते-उतरते उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण-अनन्तगुण कहना। जिसे ४९ से ४० के अंक तक बताया है।
१३. इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कण्डकमात्र स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग तब तक कहना चाहिये यावत अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के विषय में जघन्य स्थिति आती है।
१४. जिस स्थितिस्थान के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हए थे, उसके अधोवर्ती स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ३० के अंक से बताया है। इसके बाद अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के नीचे प्रथम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ३० के अंक के सामने ४० के अंक से बताया है ।
१५. इसके बाद पुनः प्रागुक्त जघन्य अनुभागबंध की स्थिति के नीचे का अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे २९ के अंक से बताया है। उसके बाद अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग से नीचे द्वितीय स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे २९ के अंक के सामने ३९ के अंक से बताया है। .
इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और एक स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग तब तक कहना चाहिए यावत जघन्यस्थिति आती है। जिसे प्रारूप में २८-३८, २७-३७, २६-३६, २५-३५ आदि के क्रम को लेते हुए जघन्य स्थिति को २१ के अंक से बताया है।
१६. जो उत्कृष्ट स्थिति में कण्डक प्रमाण अनुभाग अनुक्त है, उसे प्रारूप में २० से ११ के अंक तक जानना। वह उत्तरोत्तर अनन्तगुण, अनन्तगुण है।
तियंचद्विक और नीचगोत्र को तीव्रता-मंदता इनकी तीव्रता-मंदता का विचार जघन्य स्थिति से प्रारंभ कर उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त किया जायेगा । इनकी तीव्रता-मंदता इस प्रकार है
जघन्य अनुभाग स्तोक उससे
अनन्तगुण ,
निवर्तन कण्डक
उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण उससे
,
अभव्य
-१४ ,