Book Title: Karm Prakruti Part 01
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 343
________________ २९० कर्म प्रकृति सम्बन्धी आयु की दलिकरचना उस भव में पहुंचने के प्रथम समय से ही हो जाती है, उसमें अबाधाकाल सम्मि लित नहीं है। अतः पूर्वकोटि की आयु वाले मनुष्य, तियंचों की परभव की आयु की उत्कृष्ट अबाधा पूर्वकोटि के त्रिभाग प्रमाण होती है और शेष देव, नारक और भोगभूमिजों की परभव की आयु की अबाधा छह मास होती है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवों के अपनी-अपनी आयु के त्रिभाग प्रमाण उत्कृष्ट अबाधा होती है। अन्य आचार्य भोगभूमिजों के परभव की आयु की अबाधा पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण मानते हैं । । इसी बात को चन्द्रसूरि ने संग्रहणीसूत्र गाथा ३०१, ३०२ में और अधिक स्पष्ट किया है। दिगम्बर कर्मग्रंथ गो. कर्मकांड में आयुबंध के सम्बन्ध में सामान्य से तो यही विचार प्रगट किये हैं, लेकिन देव, नारक और भोगभूमिजों की छह माह प्रमाण अबाधा को लेकर मतभेद है वहां बताया है कि छह माह शेष रहने पर आयुबंध नहीं होता है, किन्तु उसके त्रिभाग में आयुबंध होता है और उस त्रिभाग में भी यदि आयुबंध न हो तो छह माह के नौवें भाग में बंध होता है अर्थात् कर्मभूमिज मनुष्य-तियंचों की तरह जैसे उनकी पूरी आयु के विभाग में बंध होता है, वैसे ही इनको भी छह माह के विभाग में बंध होता है। भोगभूमियों को लेकर स्वयं वहीं एक मतभेद और है कि नौ मास शेष रहने पर उसके विभाग में परभव की आयु का बंध होता है। यदि आठों विभागों में आयुबंध न हो तो अनुभूयमान आयु का एक अंतर्मुहूर्त काल बाकी रहने पर परभव की आयु नियम से बंध जाती है किन्हीने भज्यमान आयु का काल आवली का असंख्यातवां भाग बाकी रहने पर नियम से परभव की आयु का बंध माना है (देखो गो. कर्मकाण्ड गाथा १५८, ६४० और इनकी टीका ) । २८. मूल एवं उत्तर प्रकृतियों के स्थितिबंध एवं प्रबाधाकाल का प्रारूप मूलक प्रकृतियां कर्मप्रकृति नाम ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अन्तरा ज्ञानावरणपंचक दर्शनावरणवर्ग (४) निद्रापंचक उत्कृष्ट स्थिति ३० को. को. सागर ७० को. को. सागर ३३ सागरोपम २० को. को. सागर ३० ३० को. को. सागर उत्कृष्ट अवाधा ३००० वर्ष ७००० वर्ष पूर्व कोटिवर्ष २००० वर्ष ३००० वर्ष उत्तर कर्मप्रकृतियां २००० वर्ष जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त १२ मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त ८ मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त सागर पल्यासंख्य भाग हीन जघन्य अबाधा अन्तर्मुहूर्त "1 " " 21 अन्तर्मुहूर्त

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