Book Title: Karm Prakruti Part 01
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala
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३०६०=
स्थितिसंक्रमण
स्थिर / नामकर्म
स्नेहप्रत्ययस्पर्धक/प्ररूपणा स्नेहाविभाग
स्पर्धक / प्ररूपणा
स्पर्श / नामकर्म
स्पर्शनाप्ररूपणा
स्थिरषट्क
स्निग्धस्पर्श / नामकर्म सुभगनामकर्म सुरभिगंध / नामकर्म सुरद्विक
Sh
सुस्वर / नामकर्म सुस्वरत्रिक सूत्रधार सूक्ष्म / नामकर्म सूक्ष्मअद्धा पल्योपम सूक्ष्मनिगोदवर्गणा सूक्ष्म पर्याप्त सूक्ष्मसंप रायगुणस्थान सूक्ष्मसंप सूक्ष्मत्रिक सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम सेवार्तसंहनन / नामकर्म संक्रम/करण संक्रमणकाल संघातन / नामकर्म संख्यातगुणहीन संख्यातगुण वृद्धि / हानि संख्यात भागहीन संख्यातभाग वृद्धि / हानि संज्वलनकषाय / त्रिक/चतुष्क
त्रसदशक सबीस
त्रिपरमाणुवर्गणा त्रिस्थानगत त्रिस्थानकरस त्रिसामयिक
त्रीन्द्रियजाति / नामकर्म
संस्थान / नामकर्म संस्थानषट्क संक्लिश्यमान संहनन / नामकर्म संहननषट्क संक्लेशस्थान
तोज ज्ञान
स्कन्ध स्थान/प्ररूपणा स्थावर / नामकर्म स्थावरत्रिक स्थावरदशक स्थावरप्रायोग्य
ज्ञानातिशय ज्ञानावरणकर्म ज्ञानावरणपंचक ज्ञानावरणवर्ग हास्यमोहनीय हास्यादियुगलकि
हास्यादिषट्क
हेतुविपाका प्रकृति / प्रकृतियां इंडसंस्थान / नामकर्म
प्रथाम
स्नेहप्रत्ययक
स्वप्रत्यय
स्वानुदय बंधिनी प्रकृति / प्रकृतियां
स्वोदयबंधिनी प्रकृति / प्रकृतियां स्त्रीवेद स्त्यानद्धि ( स्त्यानगृद्धि ) / त्रिक
क्षपक क्षपकश्रेणि क्षयोपशम क्षायिकभाव क्षायोपशमिकभाव क्षीणमोहगुणस्थान क्षुल्लकभव क्षेत्रविपाकित्व क्षेत्रविपाकिनी प्रकृति / प्रकृतियां त्रस / नामकर्म त्रस चतुष्क / त्रिक
सजीव प्रायोग्य
कर्मप्रस

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