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बंधनकरण : कतिपय महत्त्वपूर्ण प्रश्न
१. मंगलाचरणात्मक पदों की व्याख्या करके स्पष्ट कीजिये कि उन पदों द्वारा ग्रंथकार ने किस-किसको नमस्कार किया है।
२२. . नोकषायों कोः कषायसहचारी मानने के कारण को स्पष्ट केरके गति और जाति नामकर्म को पृथक् मानने
की युक्ति का निर्देश कीजिये ।
३. संघात और बंधन नामकर्म में क्या अन्तर है और उनको पृथक्-पृथक् मानने का क्या कारण है ?
प्रकृतियों के वर्गीकरण द्वारों का नामोल्लेख करके इन प्रकृतियों का किन-किन द्वारों में वर्गीकरण संभव है तथा उन द्वारों की परिभाषा भी लिखिये
ज्ञानावरणपंचक, संहननषट्क, तैजसकार्मणासप्तक, वेदनीयद्विक, अंगोपांगत्रिक, संज्वलनकषायचतुष्क, देवगतिद्विक, युगलद्विक, स्थिरषट्क ।
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५. संसारी जीव की वीर्यशक्ति द्वारा होने वाले कार्यों का निर्देश कीजिये।
६. योगाविभागों की उत्पत्ति का कारण लिखकर यह बताइये कि वे जीव के एक एक प्रदेश पर जघन्य और
उत्कृष्ठ से कितने पाये जाते हैं।
७. योगविषयक निम्नलिखित प्ररूपणाओं का संक्षेप में सारांश लिखिये
१. वृद्धिप्ररूपणा, २. समयप्ररूपणा, ३: जीवाल्पबहुत्वप्ररूपणा।
८. पौदगलिक वर्गणाओं का संक्षेप में विवेचन करके यह स्पष्ट कीजिये कि जीव द्वारा ग्रहण की जाने वाली
वर्गणायें कौन-कौन हैं।
और खसबन्धित प्रयोगप्रत्ययस्पर्धकप्ररूपणा की व्याख्या
.९.पुद्गलद्रव्ये के परस्पर संबन्ध होने का कारण क्या है
कीजिये।
असत्कल्पना द्वारा योगस्थानप्ररूपणा को स्पष्ट करके यथार्थरूप में उसका आशय स्पष्ट कीजिये ।
मूल प्रकृतियों में प्रदेशविभाजन के सामान्य नियम का निर्देश करके निम्नलिखित उत्तरप्रकृतियों के प्रदेशविभाग एवं उत्कृष्ट और जघन्य पदभावी प्रदेशों के अल्पबहुत्व का निरूपण कीजिये१. ज्ञानावरणपंचक, २. वेदनीयद्विक, ३. सोलह कषाय, ४. जातिपंचक, ५. वर्णनामकर्म, ६. संहननषट्क, ७. अंतरायपंचक ।
१२. योग एवं अनुभागबंध संबन्धी समानतंत्रीय प्ररूपणाओं को छोड़कर शेष अनुभागबंधसंबन्धी प्ररूपणाओं का
सारांश लिखिये।