Book Title: Karm Prakruti Part 01
Author(s): Shivsharmsuri, Acharya Nanesh, Devkumar Jain
Publisher: Ganesh Smruti Granthmala

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Page 340
________________ परिशिष्ट २८७ ७. इससे ऊपर प्रथम स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगण, उससे भी द्वितीय जघन्य स्थिति का अनुभाग अनन्तगुण, इस प्रकार निवर्तनकण्डक के असंख्येयभाग पर्यन्त जानना । जिसे प्रारूप में ६१ से ६७ के अंक पर्यन्त बताया है। एकोऽवतिष्ठते' इस नियम के अनुसार निवर्तनकण्डक के एक अवशिष्ट भाग को बताने के लिए ६८, ६९, ७० ये तीन अंक बतलाये हैं। .. ८. जिस उत्कृष्ट स्थितिस्थान के अनुभाग का कथन कर निवृत्त हुए, उससे उपरितन स्थितिस्थान में अनन्तगुण, अनन्तगुण अभव्यप्रायोग्य अनुभागबंध की चरम स्थिति के नीचे तक कहना चाहिये। जिसे प्रारूप में ३१ से ४० तक के अंक पर्यन्त बतलाया है। ९. जिस स्थितिस्थान से जघन्य अनुभाग का कथन करके निवृत्त हुए थे, उससे उपरितन स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ६८ के अंक से बताया है। १०. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध विषयक प्रथम स्थिति में उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। द्वितीयादि स्थितिस्थान तब तक कहना यावत कण्डकमात्र स्थितियां अतिक्रांत होती हैं। जिसे प्रारूप में ४१ से ५० के अंक तक बताया है। ११. जिस स्थितिस्थान के जघन्य अनुभाग को कहकर निवृत्त हुए थे, उससे उपरितन जघन्य स्थितिस्थान का अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में ६९ के अंक से बताया है। १२ अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग विषयक स्थितिस्थान से ऊपर कण्डकमात्र स्थितिस्थान अनन्तगुण जानना चाहिये। जिसे प्रारूप में ५१ से ६० के अंक पर्यन्त बताया है। १३.' इस प्रकार एक स्थिति का जघन्य अनुभाग और कण्डकमात्र स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण तब तक जानना, जब तक कि अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभाग की चरम स्थिति आती है। जिसे प्रारूप में ७० के अंक से जानना। १४. अभव्यप्रायोग्य जघन्य अनुभागबंध के ऊपर प्रथम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है । जिसे प्रारूप में ६१ के अंक से जानना। प्रागुक्त जघन्य अनुभागबंध के ऊपर का जघन्य स्थितिस्थान अनन्तगुण, जिसे प्रारूप में ७१ के अंक से बताया है और प्रागक्त उत्कृष्ट अनुभाग से ऊपर के स्थितिस्थान का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे ६२ के अंक से समझना। इस प्रकार एक स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग और एक स्थितिस्थान का उत्कृष्ट अनुभाग परस्पर आक्रान्त रूप में तब तक कहना यावत उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्त गुण आता है। जिसे प्रारूप में ६३-७३, ६४-७४, ६५-७५ आदि लेते हुए ९०-८१ अंक पर्यन्त कहना। यह ९० के उत्कृष्ट स्थितिस्थान का जघन्य अनुभाग हुआ। १५ अब जो उत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट अनुभाग की कण्डक मात्र स्थितियां अनुक्त हैं, उसे क्रमशः अनन्तगुण कहना। जिसे प्रारूप में ८१ से ९० के अंक पर्यन्त बताया है। २६. पल्योपम और सागरोपम का स्वरूप क्षल्लकभव का प्रमाण बतलाने के प्रसंग में जैन दृष्टिकोण से प्राचीन कालगणना का कुछ निर्देश किया गया है कि कालगणना की आद्य इकाई 'समय' है और उसके पश्चात् आवलिका, उच्छवास, स्तोक, लकआदि का क्रम चलता है। इस मुहूर्त के बाद कालगणना की ऐसी संज्ञायें चालू होगा

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