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परिशिष्ट
स्पष्टीकरण गाथा ६५, ६६ के अनुसार
१. अपरावर्तमान शुभ प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता का विचार अनुकृष्टि की तरह उत्कृष्ट स्थिति से प्रारम्भ कर अभव्यप्रायोग्य स्थिति को छोड़कर शेष स्थितियों में करना चाहिये अभव्यप्रायोग्य स्थिति १ से ८ तक के अंक द्वारा बताई है तथा २० का अंक उत्कृष्ट स्थिति का दर्शक है ।
२. उत्कृष्ट स्थिति के जघन्य पद का जघन्य अनुभाग अल्प है। इसके बाद समयोन उत्कृष्ट स्थिति का जधन्य अनुभाग अनन्तगुण है, उससे भी द्विसमयोन उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है । यह तब तक कहना यावत् निवर्तनकण्डक अर्थात् पल्योपम के असंख्यात भाग मात्र स्थितियां अतिक्रांत हो जाती हैं जिन्हें प्रारूप में २० से १७ के अंक तक बताया है।
३. निवर्तनकण्डक से नीचे प्रथम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में २० के अंक से बताया है। ४. उसके बाद समय कम उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है। जिसे प्रारूप में १६ के अंक से नीचे के अंक से बताया है निवर्तनकण्डक से नीचे द्वितीयस्थिति में जधन्य अनुभाग अनन्तगुण है, जिसे १५ के अंक से बतलाया है । इस प्रकार तब तक कहना चाहिये, जब तक जघन्य स्थिति का जघन्य अनुभाग प्राप्त होता है।
५. प्रारूप में -- इस प्रकार की पंक्ति परस्पर - आक्रांत - प्ररूपणा की दर्शक है । जिसका आशय यह है कि २० के अंक के उत्कृष्ट अनुभाग से १७ का जघन्य अनुभाग अनन्तगुण है और पुनः १६, पुनः १८, पुनः १५ इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य अनुभाग ९ के अंक तक कहना चाहिये ।
६. उत्कृष्ट स्थिति के उत्कृष्ट अनुभाग की कण्डकमात्र जो स्थितियां अनुक्त हैं, उसे जघन्यस्थिति पर्यन्त अनन्तगुण जानना चाहिये। जिन्हें प्रारूप में १२ के अंक से ९ के अंक पर्यन्त बताया है।
परावर्तमान ६ शुभ प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता
(सातावेदनीय, मनुष्यगतिद्विक देवगतिद्विक, पंचेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रऋषभनाराचसंहनन, शुभविहायोगति, स्थिरषट्क और उच्चगोत)
उक्त प्रकृतियों की तीव्रता-मंदता दर्शक प्रारूप इस प्रकार है-
स्तोक
उससे
सागरोपम शतपृथक्त्व 2 Y Z ¥ I 8 3 1 4 9 9 9
९० ८९ ""
८८ 11
८६
८५
८२
८१
७९
७८
७७
का जघन्य अनुभाग
७६ ७५
""
"
11
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"1
"
"1
33
33
"3
"
"
39
31
37
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"1
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31
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21
33
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39
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13
२७१
31
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