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कर्मप्रकृति
बंध में अन्य होते हैं, उनसे भी तृतीय स्थितिबंध में अन्य होते हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त होने तक कहना चाहिये । इसी प्रकार सभी कर्मों के अध्यवसायस्थान जानना चाहिये ।
अब तीव्रमंदता कहने का अवसर प्राप्त है । लेकिन उसका कथन आगे किये जाने से अभी उसे स्थगित करते हैं ।
इस प्रकार स्थितिसमुदाहार का विचार पूर्ण हुआ ।
प्रकृतिसमुदाहार
अब प्रकृतिसमुदाहार का कथन करते हैं। इसमें दो अनुयोगद्वार होते हैं -- प्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व । इनमें से प्रमाणानुगम में ज्ञानावरण कर्म के सर्वस्थितिबंधों में कितने अध्यवसायस्थान होते हैं ? तो इस प्रश्न के उत्तर में बतलाते हैं कि असंख्यात लोकाकाश प्रदेशों का जितना प्रमाण होता है, उतने अध्यवसायस्थान होते हैं । इसी प्रकार सभी कर्मों के अध्यवसायस्थान चाहिये । अब अल्पबहुत्व का कथन करते हैं कि --
जानना
foratory कमसो, असंखगुणियाणणंतगुणणाए । पढम जहण्णुक्कोसं बितिय जहन्नाइया चरमा ॥ ८९ ॥
शब्दार्थ -- ठिइदीहयाए- स्थिति की दीर्घता में कमसो- अनुक्रम से, असंखगुणियाण - असंख्यात गुणे, तगुणणा- अनन्तगुण, पढम- प्रथम, जहण्णुक्कोसं - जघन्य, उत्कृष्ट, बितिय - द्वितीय, तृतीय, जहन्नाइया - जघन्यादि, चरमा चरम स्थान तक ।
गाथार्थ— स्थिति की दीर्घता में क्रम से अध्यवसायस्थान असंख्यातगुण, असंख्यातगुण होते हैं और जघन्य अध्यवसाय से उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुणा होता है । इस प्रकार जघन्य स्थिति से आरम्भ करके द्वितीय, तृतीय आदि अन्तिम स्थितिस्थान तक प्रत्येक स्थान में जघन्य से उत्कृष्ट अध्यवसाय अनन्तगुणा तथा प्रथम स्थिति के उत्कृष्ट अध्यवसाय से द्वितीय स्थिति का जघन्य अध्यवसाय अनन्तगुणा होता है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक जानना चाहिये ।
विशेषार्थ -- स्थिति की दीर्घता के क्रम से अध्यवसायस्थान असंख्यात गुणित कहना चाहिये । जिस कर्म की स्थिति जिस क्रम से दीर्घ होती है, उस क्रम से उस कर्म के अध्यवसायस्थान असंख्यात गुणित कहना चाहिये। जिसका आशय इस प्रकार है कि आयुकर्म के स्थितिबंघाध्यवसायस्थान सबसे कम होते हैं, इनसे भी नाम, गोत्र के स्थितिबंधाध्यवसायस्थान असंख्यात गुणित होते हैं । शंका -- यह पूर्व में बताया गया है कि आयुकर्म के स्थितिस्थानों में यथोत्तर क्रम से असंख्यात गुणी वृद्धि होती है और नाम, गोत्र के स्थितिस्थानों में वृद्धि विशेषाधिक होती है, तव आयुक अपेक्षा नाम और गोत के अध्यवसायस्थान असंख्यात गुणित कैसे सम्भव हैं ?
समाधान- आयुकर्म की जघन्य स्थिति में अध्यवसायस्थान अतीव अल्प होते हैं । किन्तु नाम और गोत्र की जघन्य स्थिति में अध्यवसायस्थान बहुत अधिक होते हैं तथा आयुकर्म के स्थितिस्थान अल्प होते हैं और नाम, गोत्र के स्थितिस्थान बहुत अधिक होते हैं । इसलिये कोई दोष (विरोध) नहीं है ।