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२६४.
कमंत
.को दो A से १०वें अंक में बताया है। इसी प्रकार वहां तक कहना चाहिये, जहां तक जघन्य स्थितिबंध सम्बन्धी अनु. स्थानों की अनुकृष्टि समाप्त होती है।
५. इसके बाद द्वितीय स्थितिस्थान सम्बन्धी अनु स्थानों की अनुकृष्टि प्रारम्भ होती है, जो उससे आगे के स्थितिस्थान में समाप्त होती है। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिस्थान तक समझना चाहिये ।
- अपरावर्तमान ४६ शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि का प्रारूप
(परावात धननाम १५, शरीरनाम ५ संपातनाम ५ अंगोपांग ३ शुभवर्णादि ११, तीर्थंकर, निर्माणनाम, अगुरुलघुनाम, उच्छ्वास, आतप, उद्योतनाम - ४६ )
सब स्थानों में तदेक देश उ
अभर
स्थिति स्थान
20
१९
१०
१८
१६
अनु. स्थान.
(अनुकृष्टि समाप्त)
अन्य स्थिति
उत्कृष्ट स्थिति अनुकृषि प्रारम्भ
स्पष्टीकरण गाया ५९ के अनुसार
१. अपरावर्तमान शुभ प्रकृतियों की अनुकृष्टि उत्कृष्ट स्थितिबंधस्थान से प्रारम्भ होती है।
।
२. उत्कृष्ट स्थितिबंधस्थान में जो अनु. स्थान होते हैं, उनका असंख्यातवां भाग छोड़कर शेष भाग और अन्य उससे अधस्तनवर्ती स्थितिस्थान में होते हैं । जिसे ३ बिन्दु रूप असंख्यातवां भाग छोड़कर शेष भाग को लेते हुए 'अन्य' को दो 4 से १९ वें अंक में बताया है। इस प्रकार पल्योपम के असंख्यातवें भाग स्थितियां अतिक्रांत होती हैं। यहां पर उत्कृष्ट स्थितिस्थान से प्रारम्भ हुई अनुकृष्टि समाप्त होती है जो उत्कृष्ट स्थितिस्थान २० के अंक से ९ के अंक तक जानना ।
३. इसके बाद के अधस्तनस्थान में एकसमयोन उत्कृष्ट स्थितिबंध के प्रारम्भ में जो अनु. स्थान थे, उनकी अनुकृष्टि समाप्त होती है। इस प्रकार तब तक कहना चाहिये जब तक जघन्य स्थिति का स्थान प्राप्त होता है और उन कर्मप्रकृतियों की जघन्यस्थिति होती है ।
४. अभव्यप्रायोग्य जघन्यस्थिति अनुकृष्टि के अयोग्य है । अतः उसमें अनुकृष्टि का विचार नहीं किया जाता है। जो १ से ८ अंकों द्वारा प्रदर्शित की है।