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परिशिष्ट
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६. प्रमत्तविरत मूल ८
उत्तर ८१ ....... तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, नीचगोत्र, उद्योतनाम, प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क-८ का ..
. "उदय तो सम्भव नहीं किन्तु आहारकद्विक का सम्भव होने से ८७-८+२=-८१
प्रकृतियां उदययोग्य हैं। . ७. अप्रमत्तविरत मूल ८
.. उत्तर ७६ स्त्यानद्धित्रिक (निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्याद्धि) व आहारकद्विक का अप्रमत्त अवस्था .. में उदय सम्भव नहीं, अत ८१-५-७६ का उदय सम्भव है। (यद्यपि आहारकशरीर
बनाते समय लब्धि का उपयोग करने से छठा गुणस्थान प्रमादवी (उत्सुकता से) होता है, परन्तु फिर उस तच्छथरीरी जीव के अध्यवसाय की विशुद्धि से सातवें गुणस्थान में
तच्छशरीर के होने पर भी प्रमादी नहीं कहा जाता।) ... ८. अपूर्वकरण
उत्तर ७२ सम्यक्त्वमोहनीय, अर्धनाराच, कोलिका, सेवार्तसंहनने, इन चार प्रकृतियों का उदयविच्छेद सातवें गणस्थान के अन्तिम समय में होने से इस गणस्थान में इन चार का
उदय सम्भव नहीं, अत: ७६-४=७२ प्रकृतियों का उदय सम्भव है। ९. अनिवृत्तिबादर मूल ८
उत्तर ६६ हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा-६ प्रकृतियों का उदय सम्भव नहीं है। क्योंकि
इनका उदयविच्छेद आठवें गुणस्थान के अंतसमय में हो जाता है। १०. सूक्ष्मसंपराय मूल ८
उत्तर ६० स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, संज्वलन क्रोध, मान, माया-६ प्रकृतियों का उदय सम्भव नहीं। (इनका उदय तो नौवें गणस्थान के अंतिम समय तक ही होता है।)
नोट-यदि श्रेणि का प्रारंभक पुरुष है तो पहले पुरुषवेद के, फिर स्त्रीवेद के, फिर ... .. नपुंसकवेद के उदय को रोकेगा, तदनन्तर संज्वलनत्रिक के। यदि स्त्री है तो पहले
स्त्रीवेद के, फिर पुरुषवेद, फिर नपुंसकवेद के उदय को रोकेगा। यदि नपुंसक है तो
पहले नपुंसकवेद के, फिर स्त्रीवेद के, फिर पुरुषवेद के उदय को रोकेगा । .. . ११. उपशांतमोह मूल ७
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उत्तर ५९ संज्वलन लोभ का उदय नहीं रहता है । (इसका उदय तो दसवें गुणस्थान के अंतिम समय में विच्छेद हो जाता है। जिनको ऋषभनाराच व नाराच संहनन होता है, वे ही
उपशमश्रेणि करते हैं।) १२. क्षीणमोह मूल ७ . .
उत्तर ५७/५५ ऋषभनाराच व नाराच संहनन का उदय सम्भव नहीं । इनका उदय ग्यारहवें गुणस्थान तक होता है । क्षपकश्रेणि वज्रऋषभनाराचसंहनन के बिना नहीं होती, अतः ५९-२=५७ ।
. बारहवें गुणस्थान के अंत समय में निद्रा, प्रचला का भी उदय नहीं रहता, अतः ५७-२=५५। : .