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बंधनकरण
२९. उससे पर्याप्त अविरत सम्यग्दृष्टि का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है। ३०. उससे भी अपर्याप्त अविरत सम्यग्दृष्टि का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है। ३१. उससे भी अपर्याप्त अविरत सम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है। ३२. उससे भी पर्याप्त अविरत सम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यातगुणा है। ३३. पूर्वोक्त अविरत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक के उत्कृष्ट स्थितिबंध से संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक का
जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है। ३४. उससे भी संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३५. उससे भी संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है तथा 'अभितरओ
यं त्ति' अर्थात् संयत के उत्कृष्ट स्थितिबंध से लेकर अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तक का उत्कृष्ट स्थितिबंध, यह सब एक कोडाकोडी सागरोपम के भीतर ही जानना चाहिये और एकेन्द्रिय आदि के
सब जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबंध का परिमाण पूर्व में ही पृथक्-पृथक् कह दिया है । तथा-- ३६. उससे अर्थात् अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय के उत्कृष्ट स्थितिबंध से संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट
स्थितिबंध जो पहले ओघ-सामान्य से कहा गया है, वही जानना चाहिये।' ___ इन जीवभेदों में स्थितिबंध के प्रमाण और अल्पवहुत्व को निम्नलिखित प्रारूप द्वारा सरलता से समझा जा सकता है--
क्रम जीवभेद का नाम
बंधप्रकार
स्थितिबंध का प्रमाण
अल्पबहुत्व
जघन्य
१. सूक्ष्मसंपराय यति २. बादर पर्याप्त ३. सूक्ष्म पर्याप्त ४. बादर अपर्याप्त ५. सूक्ष्म अपर्याप्त
सबसे अल्प असंख्य गण" विशेषाधिक
अन्तर्मुहूर्त १सागरोपम, पल्योपम का असंख्यातवां भाग हीन
सागरोपम, पल्योपम का असंख्यातवां भाग हीन सागरोपम, पल्योपम का असंख्यातवां भाग हीन सागरोपम, पल्योपम का असंख्यातवां भाग हीन सागरोपम सागरोपम सागरोपम सागरोपम ३४ सागरोपम, पल्योपम के संख्यातवें भाग हीन,
उत्कृष्ट
७. बादर अपर्याप्त ८. सूक्ष्म पर्याप्त ९. बादर पर्याप्त १०. द्वीन्द्रिय पर्याप्त
जघन्य (२५-)
संख्यात गुणा
१. बीस कोडाकोडी सागरोपम. ७० कोडाकोडी सागरोपम इत्यादि ओष (सामान्य) स्थितिबंध कहा है।
तत्प्रमाण जानना चाहिये।