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बंधनकरण
१८७ . ३. उससे अबाधास्थान संख्यात गुणित हैं, क्योंकि वे जघन्य अबाधा से रहित पूर्वकोटि के विभाग
प्रमाण होते हैं। ४. उनसे भी उत्कृष्ट अबाधा विशेषाधिक है, क्योंकि उसमें जघन्य अबाधा का भी प्रवेश हो जाता है। ५. उससे द्विगुणहानिस्थान असंख्यात गुणित होते हैं, क्योंकि वे पल्योपम के प्रथम वर्गमूल के
असंख्यातवें भागगत समयप्रमाण होते हैं। ६. उससे भी एक द्विगुणहानि के अन्तर में निषेकस्थान असंख्यात गुणित होते हैं । इस विषयक
उक्ति का पूर्व में संकेत किया जा चुका है। ७. उनसे स्थितिबंधस्थान असंख्यात गुणित होते हैं। ८. उनसे भी उत्कृष्ट स्थितिबंध विशेषाधिक होता है, क्योंकि उसमें जघन्य स्थिति और अबाधा
का प्रवेश हो जाता है। स्पष्टता से समझने के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार है
क्रम स्थाननाम
अल्पबहुत्व
प्रमाण
उससे
१. जघन्य अबाधा २. जघन्य स्थितिबंध
अल्प, संख्यातगुण
३. अबाधास्थान ४. उत्कृष्ट अबाधा ५. द्विगुणहानिस्थान ६. निषेकस्थान
विशेषाधिक असंख्यातगुण
असंख्यात समयप्रमाण अन्तर्मुहूर्त क्षुल्लकभव (२५६ आवली) जघन्य अबाधाहीन पूर्वकोटित्रिभाग पूर्वकोटित्रिभाग पल्योपम के प्रथम वर्गमूल के असंख्यातवें भागप्रमाण असंख्यात पल्योपम वर्गमूल प्रमाण (पल्योपम का असंख्यातवां भाग) क्षुल्लकभवहीन ३३ सागरोपम प्रमाण ३३ सागरोपम
७. स्थितिस्थान ८. उत्कृष्ट स्थितिबंध
विशेषाधिक
संज्ञो-असंज्ञी पर्याप्त रहित शेष १२ जीवभेदों का आयुकर्म में स्थितिबंध आदि का अल्पबहुत्व१. पंचेन्द्रिय संज्ञी, असंज्ञी अपर्याप्तकों में और चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, बादर-सूक्ष्म एकेन्द्रिय
पर्याप्तक-अपर्याप्तकों में प्रत्येक के आयु की जघन्य अबाधा सबसे कम है। २. उससे जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा होता है, क्योंकि वह क्षुल्लकभव रूप है। ३. उससे अबाधास्थान संख्यात गुणित होते हैं। ४. उनसे भी उत्कृष्ट अबाधा विशेषाधिक होती है।