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कर्मप्रकृति
एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीवों का और अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव यदि परभव सम्बन्धी उत्कृष्ट स्थिति का बंध करते हैं, तो उनका वह उत्कृष्ट स्थितिबंध अपने-अपने भव के विभाग से अधिक पूर्वकोटिवर्ष प्रमाण जानना चाहिये । इनका अबाधाकाल अपनेअपने भव का त्रिभाग है और अबाधाकाल से हीन कर्मदलिकनिषेक होता है ।
कर्मों के उत्कृष्ट अबाधाकाल का परिमाण
वाससहस्रमबाहा, कोडाकोडीद सगस्स सेसाणं । अणुवाओ अणुवट्टणगाउसु छम्मासिगुक्कोसो ॥७५॥
शब्दार्थ - - वाससहस्सं - एक हजार वर्ष, अबाहा - अवाधा, कोडाकोडी - कोडाकोडी, दस-द सागरोपम की, सेसाणं - शेष की, अणुवाओ - अनुपात से, अणुवट्टणगाउसु - सु-अनपवर्तनीय आयु की छम्मासिगुक्कोसो-छह मास की उत्कृष्ट ।
गाथार्थ -- दस कोडाकोडी सागरोपम स्थिति का अवाधाकाल एक हजार वर्ष होता है । इसी अनुपात से शेष स्थितियों का अबाधाकाल जानना चाहिये । अनपवर्तनीय आयु वाले जीवों की आयु का अवाधाका उत्कृष्ट छह मास होता है ।
विशेषार्थ - अव आयुकर्म को छोड़कर शेष सब कर्मों के आबाधाकाल के परिमाण का प्रतिपादन करते है । दस कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थितियों का अबाधाकाल एक हजार ( १००० ) वर्ष होता है । शेष वारह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, अठारह, बीस, तीस, चालीस और सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण स्थितियों का अबाधाकाल इसी अनुपात से अर्थात् राशिक रीति से जानना चाहिये। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-- जब दस कोडाकोडी सागरोपम वाली स्थितियों का अबाधाकाल एक हजार वर्ष का प्राप्त होता है, तब बारह कोडाकोडी सागरोपम वाली स्थितियों का अबाधाकाल वारहसो (१२००) वर्ष और चौदह कोडाकोडी सागरोपम वाली स्थितियों का अवाधाकाल चौदहसो ( १४०० ) वर्ष प्राप्त होता है । इसी प्रकार सभी स्थितियों के उत्कृष्ट अवधाकाल को समझ लेना चाहिये ।
'अणुवट्टणगाउसु ति' अर्थात् अनपवर्तनीय' आयु वाले जो देव, नारक और असंख्यात वर्ष की
१. आयु के दो प्रकार हैं- अपवर्तनीय, अनपवर्तनीय । बाह्यनिमित्त से जो आयु कम हो जाती है, उसे अपवर्तनीय आयु कहते हैं । तात्पर्य यह है कि जल में डूबने, शस्त्रघात, विषपान आदि बाह्य कारणों से अपनी बंधी हुई आयु को अन्तर्मुहूर्त में भोग लेना, आयु का अपवर्तन है। ऐसी आयु को अकालमृत्यु भी कहते हैं । जो आयु किसी भी कारण ये कम न हो, जितने काल तक के लिये बांधी गई है, उतने काल तक भोगी जाये, वह अनपवर्तनीय आयु है । उपपात जन्म वाले नारक, देवों के अतिरिक्त तद्भवमोक्षगामी, उत्तम पुरुष (तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि) और असंख्यात वर्ष जीवी मनुष्य तीस अकर्मभूमियों, छप्पन अंतद्वीपों में और कर्मभूमियों में उत्पन्न युगलिक हैं और असंख्यात वर्ष जीवी तियंच उक्त क्षेत्रों के अलावा ढाई द्वीप के बाहर द्वीप, समुद्रों में भी पाये जाते हैं। ये सभी अपनी आयु वाले हैं और शेष अपवर्तनीय आयु वाले हैं।