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बंधनकरण
आयु वाले तिर्यंच, मनुष्य हैं, उनके परभव की आयु के उत्कृष्ट बंध में परभव की आयु की उत्कृष्ट अबाधा छह मास प्रमाण जानना चाहिये।'
__ कितने ही आचार्य युगलधर्मी (युगलिक), भोगभूमिज मनुष्य, तिर्यंचों का अबाधाकाल पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण मानते हैं । जैसा कि कहा है
पलियासंखिज्जंसं जुगधम्माणं वयंतण्णे ।। अर्थात् अन्य आचार्य युगलर्मियों की आयुष्य का अबाधाकाल पल्योपम का असख्यातवां भाग कहते हैं ।
इस प्रकार सब कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति का कथन किया जा चुका है। अब उनकी जघन्य स्थिति को बतलाते हैं । कर्मप्रकृतियों की जघन्य स्थिति
भिन्नमुहुत्तं आवरण-विग्छदसणचउक्कलोमंते । बारस सायमुहुत्ता, अट्ठ य जसकित्तिउच्चेसु ॥७६॥ दो मासा अद्धद्धं, संजलणे पूरिस अट्ठ वासाणि ।
भिन्नमुहुत्तमबाहा, सव्वासि सहि हस्से ॥७७॥ शब्दार्थ-भिन्नमुहत्तं-भिन्नमुहूर्त अर्थात् अन्तर्मुहूर्त, आवरण-ज्ञानावरण, विग्धं-अन्तराय, सणचउक्कं-दर्शनावरणचतुष्क, लोभंते-अन्तिम (संज्वलन) लोभ, बारस-वारह, साय-सातावेदनीय, मुहुत्ता-मुहूर्त, अट्ठ-आठ, य-और, जसकित्ति-यशःकीति, उच्चेसु--उच्चगोत्र । १. आयुकर्म की अबाधा के सम्बन्ध में एक बात ध्यान रखने योग्य है कि अबाधा के लिये जो नियम बताया गया
है कि एक पूर्व कोडाकोडी सागर की स्थिति में सौ वर्ष अबाधाकाल होता है, वह नियम आयुकर्म के सिवाय शेष सात कर्मों की ही अबाधा निकालने के लिये है। आयुकर्म की अबाधा स्थिति के अनुपात पर अवलंबित नहीं है। इसका कारण यह है कि अन्य कर्मों का बंध तो सर्वदा होता रहता है। किन्तु आयुकर्म का बंध अमुक-अमुक काल में ही होता है । गति के अनुसार वे अमुक-अमुक काल निम्न प्रकार हैं--मनुष्य और तिर्यंचगति में जब भुज्यमान आयु के दो भाग बीत जाते हैं, तब परभव की आयु के बंध का काल उपस्थित होता है। जैसे किसी मनुष्य की आयु ९९ वर्ष की है तो उसमें से ६६ वर्ष बीतने पर वह मनुष्य परभव की आयु बांध सकता है । उससे पहले उसके आयुकर्म का बंध नहीं हो सकता है। इसी से कर्मभूमिज मनुष्य और तिर्यचों के बध्यमान आयुकर्म का अबाधाकाल एक पूर्वकोटि का तीसरा भाग है। क्योंकि कर्मभूमिज मनुष्य, तिर्यंच की आयु एक पूर्वकोटि की होती है और उसके विभाग में परभव की आयु बंधती है । लेकिन भोगभूमिज मनुष्य और तिर्यंच तथा देव और नारक अपनी-अपनी आयु के छह मास शेष रहने पर परभव की आयु बांधते हैं । इसी से ग्रंथकार ने अनपवर्तनीय आय वालों का बध्यमान आयु का अबाधाकाल छह मास
बताया है। २. पंचसंग्रह, पंचम द्वार गा. ४१ . ३. आयुबंध और उसकी अबाधा के सम्बन्ध में मतभेद को दर्शाते हुए पंचसंग्रह में पंचम द्वार गाथा ३७-४१ तक
रोचक चर्चा की है। जिसको परिशिष्ट में देखिये ।