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बंधनकरण
ताणन्नणि त्ति परं, असंखमागाहिं कंडगेक्काण । उक्कोसियरा नेया, जा तक्कंडकोवरि समत्तो ॥ ६७॥
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शब्दार्थ -- ताणन्नाणि त्ति - वे सब और अन्य इस अनुकृष्टि से, परं-आगे, असंखभागाहिंअसंख्यात भाग जाने के बाद, कंडगेक्काण - एक कंडक का, उक्कोसियरा - उत्कृष्ट और जघन्य, नेयाजानना चाहिये, जा-तक, तक्कंडकोवरि - उस ऊपर के कंडक की, समती - पूर्णता, समाप्ति होती है ।
गाथार्थ - ' वे सब और अन्य अनुभाग होते हैं' इस प्रकार की अनुकृष्टि से आगे एक कंडक के असंख्यात भाग व्यतीत हो जाने तक कंडक प्रमाण स्थितियों की एक-एक स्थिति का यथाक्रम से उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग अनंतगुणा जानना चाहिये, जहाँ तक ऊपर के कंडक की पूर्णता होती है ।
विशेषार्थ - - ' वे सब और अन्य अनुभाग होते हैं - इस प्रकार की अनुकृष्टि से आये कंडक के असंख्यात भागों से ऊपर कंडक प्रमाण स्थितियों की एक-एक स्थिति का यथाक्रम से उत्कृष्ट और जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा जानना चाहिये । इस कथन का तात्पर्य यह है कि-
वे सब और अन्य अनुभाग रूप अनुकृष्टि से आगे जघन्य अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुणा तब तक कहना चाहिये, जब तक कंडक प्रमाण स्थितियों के असंख्यात बहुभाग व्यतीत होते हैं और एक भाग - शेष रहता है । तत्पश्चात् जिस स्थिति से आरम्भ करके 'वे सब और अन्य' इस प्रकार की अनुकृष्टि आरम्भ हुई है, वहाँ से लेकर कंडक प्रमाण स्थितियों का उत्कृष्ट अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुण रूप से कहना चाहिये, तत्पश्चात् जिस स्थितिस्थान से जघन्य अनुभाग कह कर निवृत्त हुए, उससे परिवर्ती स्थितिस्थान में जघन्य अनुभाग अनन्तगुण जानना चाहिये । इस प्रकार एक-एक स्थिति के जघन्य अनुभाग और उत्कृष्ट अनुभाग की तीव्रता-मंदता को एक- एक कंडक के प्रति तब तक कहना चाहिये, जब तक जघन्य अनुभाग विषयक स्थितियों की 'वे सब और अन्य अनुभाग रूप अनुकृष्टि से परे कंडक पूर्ण होता है ।
उत्कृष्ट अनुभाग सागरोपमशतपृथक्त्व तुल्य होते हैं । उससे ऊपर जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा होता है, उसके पश्चात् एक उत्कृष्ट अनुभाग, उसके पश्चात् एक जघन्य अनुभाग, उसके बाद एक उत्कृष्ट अनुभाग, इस क्रम से तब तक कहना चाहिये, जब तक जघन्य अनुभाग विषयक सभी स्थितियां समाप्त होती हैं ।
उत्कृष्ट अनुभाग विषयक कंडक प्रमाण स्थितियां अभी अनुक्त हैं, शेष सभी कह दी गई हैं । इसलिये उनका उत्कृष्ट अनुभाग उत्तरोत्तर अनन्तगुण कहना चाहिये। इस बात को बतलाने के लिये 'जा तक्कंडकोवरि समसी' यह पद दिया गया है। इसका अर्थ यह है कि तब तक उन जघन्य अनुभागों को जो कंडक के उपरिवर्ती हैं, उनकी समाप्ति तक इसी क्रम से कहना चाहिये । जिसका स्पष्टीकरण यह है
अनुक्रम से अनन्तगुण, अनन्तगुण रूप से कही गई जघन्य अनुभाग विषयक स्थितियों के कंडक से ऊपर एक-एक उत्कृष्ट अनुभाग से अन्तरित जघन्य अनुभाग तब तक कहना चाहिये,