________________
बंधनकरण
१०९
कहना चाहिये । तत्पश्चात् फिर एक अनंतगुणाधिक अनुभागबंधस्थान कहना चाहिये । इस प्रकार अनंतगुणाधिक अनुभागबंधस्थान तब तक कहना चाहिये, जब तक कि वे कंडक प्रमाण होते हैं ।' अब इसी सूत्र का अनुसरण करके आगे कहते हैं
एगं असंखभागे - णणंतभागुत्तरं पुणो कंडं । एवं ..असंखभागु - त्तराणि जा. पुव्वतुल्लाणि ॥३३॥ .. एर्ग संखेज्जत्तरमेत्तो तीयाण तिथिया बीयं । ताण वि पढमसमाई, संखेज्जगुणोत्तरं एक्कं ॥३४॥ एत्तो तीयाणिअइत्थियाणि बिइयमवि ताणि पढमस्स। .......... तुल्लाणसंखगुणियं, एक्कं तीयाण एक्कस्स ॥३५॥ बिइयं ताणि समाइं पढमस्साणंतगुणियमगं तो।
तीयाण इत्थियाणं ताण वि पढमस्स तुल्लाइं ॥३६॥ . . . शब्दार्थ--एगं-एक (प्रथम कंडक से आगे), असंखभागेण- असंख्येयभागाधिक स्थान, अणंतभागुत्तरं-अनंतभागाधिक स्थान का, पुणो-पुनः फिर, कंडं-कंडक, एवं-इसी प्रकार, असंखभागुत्तराणि-असंख्यभागाधिक स्थान, जा-यावत्, तक, पुव्वतुल्लाणि-पूर्व के तुल्य (कंडक प्रमाण)। ___एग-एक, संखेज्जुत्तरं-संख्यातभाग वृद्धि का स्थान, एत्तो-तत्पश्चात्, तीयाण-अतिक्रमण करने के, तित्थिया- उतने का अतिक्रमण कर चुके तब , बीयं-दूसरा, ताण वि- वे भी (संख्यातभाग वृद्धि के स्थान भी ), पढमसमाई-पहले के समान, · संखेज्जगुणोत्तरं-संख्येयगुणाधिक, एक्क- एक।
एत्तो-उससे आगे, तीयाणि-पहले से अतिक्रमण कर चुके उतने, अइत्थियाणि-अतिक्रमण करके, बिइयमवि-दूसरा भी स्थान (संख्येयगुणाधिक का दूसरा स्थान), ताणि-वह, पढमस्सप्रथम, तुल्लाण-तुल्य, असंखगुणियं-असंख्यात गुणाधिक, एक्कं-एक, तीयाण-पूर्व स्थानों का अतिक्रमण करके, एक्कस्स-एक।।
बिइयं-दूसरा, ताणि-वे, समाई-समान, पढमस्स-प्रथम के, अणंतगुणियं-अनन्त गुणाधिक, एगएक, तो-उससे आगे, तीयाण-पूर्वातीत स्थानों के बराबर, इत्थियाणं-उल्लंघन करके, ताण विवे भी, पढमस्स-पहले के, तुल्लाइं-तुल्य समान । -
गाथार्थ-प्रथम कंडक से आगे असंख्यभागाधिक एक अनुभागबंधस्थान आता है । उससे आगे पुनः अनन्तभागाधिक स्थान का कंडक आता है । इस प्रकार असंख्यभागाधिक स्थान पूर्व तुल्य अर्थात् कंडक प्रमाण हों, वहाँ तक कहना चाहिये । १. एक षट्स्थान में असंख्य लोकाकाश प्रदेश प्रमाण स्थान होते हैं और ऐसे षट्स्थान भी असंख्यात हैं।