________________
बंधनकरण
७१
कार्मणशरीरवर्गणा
इस ( मन की ) अग्रहण - प्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणा से एक परमाणु अधिकं स्कन्धरूप कर्मप्रायोग्य जघन्य ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है । उन पुद्गलों को ग्रहण करके जीव ज्ञानावरणादि रूप से परिणमित करते हैं । उससे आगे एक-एक परमाणु अधिक स्कन्धरूप वर्गणायें तब तक कहना चाहिये, जब तक किं कर्मप्रायोग्य उत्कृष्ट ग्रहणवर्गणा प्राप्त होती है।
यहाँ सर्वत्र उत्कृष्ट ग्रहण- प्रायोग्य वर्गणायें अपनी जघन्य वर्गणा के अनन्तवें भाग रूप विशेष से अपनी-अपनी जघन्य वर्गणा की अपेक्षा अधिक होती हैं और अग्रहणप्रायोग्य उत्कृष्ट वर्गणायें अपनी जघन्य वर्गणा की अपेक्षा अभव्यों से अनन्तगुणी और सिद्धों के अनन्तवें भाग राशि प्रमाण से अनन्तगुणी जानना चाहिये ।
'भासामणे य' इस वाक्य में पठित च (य) शब्द अनुक्त अर्थ का समुच्चयार्थक है। इसलिये भाषावर्गणा के अनन्तर अग्रहण-वर्गणा से अन्तरित प्राणापान-वर्गणा जानना चाहिये । प्राणापान वर्गणा का कथन पूर्व में कर दिया है । 'कम्मे य' यहाँ पठित च (य) शब्द सर्वगाथोक्त अर्थ का समुच्चय करता है ।
औदारिकादि वर्गणाओं के वर्णादि
अब प्रसंगवश इन औदारिक आदि वर्गणाओं के वर्ण आदि का निरूपण करते हैं- . उक्त वर्गणाओं में से औदारिक, वैक्रिय, आहारक शरीर की वर्गणायें पांचों वर्ण, दोनों गंध, पांचों रस और आठों स्पर्श वाली होती हैं । यद्यपि एक परमाणु में एक ही वर्ण, एक ही रस, एक ही गंध और अविरोधी दो स्पर्श होते हैं, तथापि अनेक परमाणुओं के समुदाय रूप स्कन्ध में कोई परमाणु किसी भी वर्णादि से युक्त होता है और कोई किसी से, इसलिये समुदाय में पांचों वर्ण आदि का प्रतिपादन करने में कोई विरोध नहीं है । तैजसप्रायोग्य आदि वर्गणायें ( कर्म वर्गणा पर्यन्त ) पांचों वर्ण, पांचों रस और दोनों गंध वाली जानना चाहिये, किन्तु स्पर्श विचार के प्रसंग में उनमें चार स्पर्श होते हैं। क्योंकि उनमें मृदु और लघु रूप दो स्पर्श तो अवस्थित रूप से पाये जाते हैं और अन्य दो स्पर्श - स्निग्ध-उष्ण, स्निग्ध शीत अथवा रूक्ष-उष्ण और रूक्ष-शीत-- ये अनियत होते हैं । कहा भी है-
पंचरस पंचवर्णो हि परित्रया अट्ठफास दोगंधा । जवाहारगजग्गा उफासविसेसिया उर्वार ।।'
९. यद्यपि मूल गाथा में श्वासोच्छ्वास वर्गणा के नाम का उल्लेख नहीं है, किन्तु पहले गाथा १७ के 'भासाणुमणत्तणे बंधे' पद में उल्लेख कर दिया है। इसलिये यहाँ 'य' कार पद के अनुक्तसमुच्चयार्थक रूप अर्थ के द्वारा श्वासोच्छ्वासवर्गणा का नाम सूचित किया है।
२. पंचसंग्रह, बंधनकरण गाथा १८