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कर्मप्रकृति
शब्दार्थ-पण्णाछेयछिन्ना-सर्वज्ञ की बुद्धि रूपी छैनी-शस्त्र द्वारा छिन्न किये गये, लोगासंखेज्जगप्पएससमा-लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश प्रमाण हैं, अविभागा-अविभाग, जिनका दूसरा टुकड़ा न हो सके, एक्कक्के-एक-एक, होति-होते हैं, पएसे-प्रदेश पर, जहन्नेणं-जघन्य से ।
___ गाथार्थ--सर्वज्ञ की प्रज्ञा (बुद्धि-केवलज्ञान) रूपी छैनी शस्त्र द्वारा छिन्न किये गये ऐसे वीर्य के अविभाज्य अंश जीव के एक-एक प्रदेश पर जघन्य से भी लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश प्रमाण होते हैं ।
विशेषार्थ--जीव की वीर्य-शक्ति के केवली के प्रज्ञारूपी छेदनक (शस्त्र) के द्वारा लगातार खण्ड-खण्ड किये जाते हुए जव विभाग प्राप्त न हो, ऐसा जो उसका अंतिम अंश प्राप्त होता है वह वीयांविभाग कहलाता है-जीवस्य वीर्य केवलिप्रज्ञाच्छेदनकन छिद्यमानं यदा विभागं न दत्ते तदा योंऽशो विश्राम्यति स वीर्या विभाग उच्यते। प्रज्ञा छेदनक के द्वारा छिन्न-छिन्न किये गये वे वीर्याविभाग एक-एक जीवप्रदेश पर जघन्य से भी (अल्पातिअल्प संख्या में ) लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश प्रमाण होते हैं और उत्कर्ष से भी उतनी ही संख्या वाले अर्थात् लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश प्रमाण होते हैं । किन्तु वे जघन्यपदभावी वीर्याविभागों से असंख्यात गुणित जानना चाहिये । गाथा में आगत 'लोगासंखज्जगप्पएसमा लोकासंख्येक प्रदेशसमा'-इस पद की व्याख्या इस प्रकार करनी चाहिये कि लोक के जो असंख्य प्रदेश हैं, उतने ही वीर्याविभाग के भी प्रदेश हैं। कहा भी है
पन्नाए अविभागं जहण्णविरियस्स बीरियं छिन्नं ।
एक्केक्कस्स पएसस्सऽसंखलोगप्पएस समं ॥ जघन्य बीर्य वाले जीव के वीर्य को प्रज्ञा द्वारा छिन्न किये जाने अर्थात् उत्तरोत्तर खण्डखण्ड किये जाने पर प्राप्त अंतिम अंश अविभागी कहलाता है । ऐसे अविभागी अंश भी जीव के एक-एक प्रदेश पर लोक के असंख्यात प्रदेशों के बराबर होते हैं ।
इस प्रकार अविभाग-प्ररूपणा का आशय जानना चाहिये। २. वर्गणा-प्ररूपणा अविभाग-प्ररूपणा करने के वाद अब वर्गणा-प्ररूपणा का कथन करते हैं--
जेसि पएसाण समा, अविभागा सव्वतो य थोवतमा। .
ते वग्गणा जहन्ना, अविभागहिया परंपरओ ॥७॥ शब्दार्थ--जेसि-जिन, पएसाण-प्रदेशों के, समा-समान, अविभागा-अविभाज्य अंश, सव्वतोसवसे, थोवतमा-अल्पतम, ते–वे, वग्गणा-वर्गणा, जहन्ना-जघन्य, अविभागहिया-एक-एक अविभाग अंश से अधिक, परंपरओ-परम्परा से, क्रम से ।
गाथार्थ--जिन जीवप्रदेशों के वीर्याविभाग तुल्य (समान) संख्या वाले और दूसरे जीव प्रदेश में रहे हुए वीर्याविभागों की अपेक्षा अल्पतम (थोड़े) होते हैं, उन जीवप्रदेशों की प्रथम