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बंधनकरण जीवभेदापेक्षा योगविषयक अल्पबहुत्व
चतुरादि समय वाले योगस्थानों के अल्पबहुत्व का कथन करने के वाद अब उन योगस्थानों में वर्तमान (चौदह) जीवस्थानों के जघन्य-उत्कृष्ट योगविषयक अल्पबहुत्व को कहते हैं
सव्वत्थोवो जोगो साहारण सुहम पढमसमयम्मि । बायर बिथतियचउरमणसम्नपज्जत्तगजहन्नो ॥१४॥ आइदुग क्कोसो सि पज्जत्तजहन्नगेयरे य कमा। उक्कोसजहन्नियरो, असमत्तियरे असंखगुणो ॥१५॥ अमणाणुत्तरगेविज्ज--भोगभूमिगय तइयतणुगेसु।
कमसो असंखगुणिओ सेसेसु य जोगु उक्कोसा ॥१६॥ शब्दार्थ--सव्वत्थोवो-सबसे अल्प, जोगो-योग, साहारण-साधारण (निगोदिया), सुहुम-सूक्ष्म, पढमसमयम्मि-प्रथम समय में, बायर-वादर, बियतियचउरमण-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, सन्न-संज्ञी, अपज्जत्तग-अपर्याप्तों का, जहन्नो-जघन्य । ':,' आइदुग-आदि के दो जीवभेदों का, उक्कोसो-उत्कृष्ट, सि-इन्हीं दोनों के, पज्जत्त-पर्याप्त, जहन्नगेयरे-जघन्य और इतर (उत्कृष्ट), य-और, कमा-क्रम से, उक्कोस-उत्कृष्ट, जहन्नियरो-जघन्य, इतर (उत्कृष्ट), असमत्तियरे-अपर्याप्त और पर्याप्त में, असंखगुणो-असंख्यात गुणा।
___ अमणा-असंज्ञी पंचेन्द्रिय, अणुत्तर-अनुत्तर विमानवासी, गेविज्ज-वेयक (विमानवासी, भोगभूमिगय-भोगभूमिया जीव, तइयतणुगेसुं-तीसरे शरीर वालों में, कमसो-अनुक्रम से, असंखगुणिओअसंख्यातगुणा, सेसेसु-शेष रहे जीवों में, य-और, जोगु-योग, उक्कोसा-उत्कृष्ट ।
गाथार्थ-सबसे अल्प योग साधारण (निगोदिया) सूक्ष्म जीव के प्रथम समय में होता है और इससे आगे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों का जघन्य योग अनुक्रम से उत्तरोत्तर असंख्यात गुणा होता है।
उससे आगे आदि के दो जीवभेदों का उत्कृष्ट योग तथा इन्हीं दोनों के पर्याप्त का 'जघन्य और उत्कृष्ट योग तथा शेष रहे अपर्याप्त जीवों का उत्कृष्ट योग तथा पर्याप्त जीवों का जघन्य और उत्कृष्ट योग अनुक्रम से असंख्यात गुणा है।
असंज्ञी पचेन्द्रिय, अनुत्तर विमानवासी, वेयकवासी, भोगभूमिज और तीसरे शरीर वाले जीवों का अनुक्रम से योग असंख्यात गुणा होता है। उक्त जीवों से शेष रहे हुए जीवों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा होता है। . विशेषार्थ—यहां पर असंख्यात गुण पद का सम्बन्ध उत्तरवर्ती गाथा १५ में आगत असंखगुणो पद से है। इसलिये १: साधारण सूक्ष्म लब्धि-अपर्याप्तक अवस्था में वर्तमान जीव का प्रथम समय में जघन्य योग सवसे कम होता है । २. उससे बादर एकेन्द्रिय लब्धि-अपर्याप्तक के प्रथम समय में वर्तमान