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कर्मप्रकृति
बंधण संकमणुव्वट्टणा य अववट्टणा उदीरणया ।
उवसामणा निहत्ती निकायणा च त्ति करणाई ॥२॥ शब्दार्थ-बंधण-बंधन, संकमण-संक्रमण, उव्वट्टणा-उद्वर्तना, य-और, अववट्टणा-अपवर्तना, उदीरणया-उदीरणा, उवसामणा-उपशामना, निहत्ती-निधत्ति, निकायणा-निकाचना, च-और, ति-इस प्रकार करणाइं-करण ।
गाथार्थ--वन्धन, संक्रमण, उद्वर्तना, अपवर्तना, उदीरणा, उपशामना, निधत्ति और निकाचना, इस प्रकार (आठ) करण हैं ।
विशषार्थ--बध्यते जीवप्रदेशः सहान्योऽन्यानुगतीक्रियतेऽष्टप्रकारं कर्म येन वीर्यविशेषण तबंधनं-जिस वीर्यविशेष के द्वारा आठ प्रकार के कर्मों को जीवप्रदेशों के साथ अन्योन्यानुगत (एकमेव) किया जाये, उसे बंधनकरण कहते हैं ।
२. संक्रम्यन्तेऽन्यकर्मरूपतया व्यवस्थिताः प्रकृतिस्थत्यनुभागप्रदेशाः अन्यकर्मरूपतया व्यवस्थाप्यन्ते येन तत्संक्रमणं-जिस वीर्यविशेष के द्वारा अन्य कर्म रूप से अवस्थित प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश अन्य (दूसरे ) कर्म रूप से व्यवस्थापित किये जायें, उसे संक्रमण कहते हैं। उद्वर्तना और अपवर्तना, ये दोनों संक्रमण के ही भेद हैं, किन्तु ये दोनों केवल कर्मों की स्थिति और अनुभाग से आश्रित हैं।
३. तत्रोद्वत्यैते प्रभूतीक्रियते स्थित्यनुभागौ या वीर्यपरिणत्या सा उद्वर्तना-जिस वीर्यपरिणति के द्वारा कर्मों की स्थिति और अनुभाग उद्वर्तित अथवा प्रभुत किये जायें (बढ़ा दिये जायें), उसे उद्वर्तनाकरण कहते हैं ।
४. अपवत्यैते ह्रस्वीक्रियते तो यया साऽपवर्तना-जिस वीर्यविशेष की परिणति के द्वारा वे दोनों (स्थिति और अनुभाग) अपवर्तित अर्थात् ह्रस्व कर दिये जायें (कम कर दिये जायें, घटा दिये जायें), उसे अपवर्तनाकरण कहते हैं ।
५. उदीर्यतेऽनुदयप्राप्तं कर्मदलिकमुदयावलिकायां प्रवेश्यते यया सा उदीरणा--जिस वीर्यविशेष की परिणति के द्वारा अनुदयप्राप्त कर्मदलिक उदयावलिका में उदीरित अर्थात् प्रविष्ट किये जायें, उसको उदीरणाकरण कहते हैं ।
६. उपशम्यते उदयोदोरणानिधत्तिनिकाचनाकरणायोग्यत्वेन व्यवस्थाप्यते कर्म यया सोपशमना-- जिस वीर्यविशेष की परिणति के द्वारा कर्म उपशमित किये जायें अर्थात् उदय, उदीरणा, निधत्ति और निकाचनाकरण के अयोग्य रूप से व्यवस्थापित किये जायें, उसे उपशमनाकरण कहते हैं ।
७. निधीयते उद्वर्तनापवर्तनान्यशेषकरणायोग्यत्वेन व्यवस्थाप्यते यया सा निधत्तिः--जिस वीर्यविशेष की परिणति के द्वारा कर्म निधीयते अर्थात् उद्वर्तना और अपवर्तना के सिवाय अन्य शेष करणों के अयोग्य रूप से व्यवस्थापित किये जाते हैं, उसे निधत्तिकरण कहते हैं। पृषोदरादि से इस शब्द के इष्ट रूप की सिद्धि होती है ।