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जैन कथा कोष
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का मल्ल प्रतिवर्ष बाजी मार ले जाये, इसमें तो मेरे देश का गौरव कम हो जाता । अब वह ऐसे व्यक्ति की तलाश में रहने लगा जिसे मल्ल बनाया जा सके । एक बार वह नदी तट पर टहल रहा था । वहाँ उसे एक हृष्ट-पुष्ट मछुआ दिखाई दिया । उसे वह जँच गया। उसने उसे अपनी मल्लशाला में रख लिया । दूध-दही आदि पौष्टिक पदार्थों के सेवन तथा व्यायाम से वह अच्छा मल्ल बन गया। उसका नाम रखा गया— मच्छियमल्ल ।
अगले वर्ष के मल्ल-महोत्सव में मच्छियमल्ल ने अट्टणमल्ल को पराजित कर दिया ।
अपनी हार से अट्टणमल्ल बड़ा दुःखी हुआ । उसने सोचा-अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। कोई युवा मल्ल बनाना चाहिए जो मेरे गौरव की रक्षा कर सके । इसी उधेड़बुन में वह उज्जयिनी वापस जा रहा था, तभी मार्ग में सौराष्ट्र देश का 'दुरुल्लकुतिया' नाम का गाँव पड़ा। उसने देखा कि एक हृष्ट-पुष्ट नवयुवक किसान अपने एक हाथ में हल और दूसरे में फलिह लिये चला जा रहा है। उसे वह जँच गया। उसने उससे बातचीत की। युवक किसान मल्ल बनने को राजी हो गया। अट्टणमल्ल ने उस किसान की पत्नी को धन आदि देकर उसके घर की व्यवस्था की और युवा किसान को अपने साथ ले आया । उज्जयिनी आकर उसने इसे नये मल्ल को तैयार किया और नाम रखाफलिहमल्ल | फलिहमल्ल साल-भर में मल्ल-विद्या के सभी दाव पेंच सीखकर कुशल मल्ल बन गया ।
अगले वर्ष पुनः सोपारक नगर में मल्ल - महोत्सव हुआ। अट्टणमल्ल अपने नये शिष्य फलिहमल्ल के साथ पहुँचा । मच्छियमल्ल भी राजकीय सम्मान के साथ आया । मच्छियमल्ल और फलिहमल्ल की कुश्ती शुरू हुई, दोनों ने अनेक प्रकार के दाव पेंच दिखाये। सुबह से शाम तक दोनों में से कोई नहीं हारा। दूसरे दिन फिर कुश्ती होने का निर्णय हुआ ।
रात के समय अट्टण ने फलिह से पूछा - ' बेटा ! तेरे शरीर में कहीं दर्द हो तो बता दे ।' फलिह ने भी कुछ न छिपाकर अपने गुरु को सरल भाव से साफ-साफ बता दिया । अट्टण ने सहस्रपाक आदि तेलों की मालिश करके उसे पुन: तरोताजा बना दिया ।
उधर मच्छियमल्ल से भी राजा ने पूछा—'तेरा शरीर कहीं दुखता हो तो बता दे ?' लेकिन मच्छियमल्ल ने अभिमान में भरकर कह दिया कि 'मेरा शरीर