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१० जैन कथा कोष लगी। गुफा में ही अंजना ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का जन्म होते ही सारी स्थितियों ने मोड़ लिया। हनुपुर का स्वामी राजा प्रतिसूर्य, जो अंजना का मामा था, संयोगवश वहाँ आ पहुँचा। अंजना को विमान में बिठाकर अपने नगर में ले आया। अंजना के पुत्र का नाम रखा—'हनुमान'। ___बारह महीनों तक पवनजय और वरुण का युद्ध चलता रहा। वरुण को परास्त कर विजय-दुन्दुभि बजाते हुए पवनंजय अपने नगर में आये। माता-पिता से मिले, परन्तु अंजना को नहीं देखकर बात का भेद जानना चाहा। बात का भेद जानने पर पवनंजय को भारी अनुताप हुआ। उन्होंने अंजना के न मिलने तक कुछ भी नहीं खाने-पीने की प्रतिज्ञा की। चारों ओर अंजना का पता लगाने के लिए लोग दौड़े। अन्त में हनुपुर नगर से धूमधाम के साथ अंजना को आदित्यपुर नगर में ले आये। सास-ससुर आदि सबने अपने किये हुए कार्य पर अनुताप किया। हनुमान को देखकर सभी पुलकित हो उठे। प्रह्लाद की मृत्यु के बाद पवनंजय महाराज ने अतुल राज्य वैभव का उपभोग किया तथा अन्त में दोनों ने दीक्षा ली और स्वर्गगामी बने।
त्रिषष्टि शलाकापुरूष चरित्र, पर्व ७
६. अट्टणमल्ल उज्जयिनी नगरी का राजा जितशत्रु' मल्लविद्या का बहुत ही प्रेमी था। उसने एक राजकीय मल्लशाला खोल रखी थी। उसमें अनेक मल्ल रहते थे। उनका सरदार अट्टणमल्ल था।
राजा जितशत्रु के समान ही 'सोपारक' नगर का शासक 'सिंहगिरि' भी मल्लयुद्ध का बहुत प्रेमी था। वह भी अनेक मल्लों को पालता था और प्रतिवर्ष मल्ल-महोत्सव कराता था, जिसमें दूर-दूर के मल्लों को आमंत्रित किया जाता था। उसमें सम्मिलित होने वाले मल्ल अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करते। विजयी मल्ल को राजा सिंहगिरि ढेर सारा सोना-चाँदी आदि देकर पुरस्कृत करता और उसे एक विजय-पताका भी देता, जो उसके विजेता होने का गौरवप्रतीक होती। इस मल्ल-महोत्सव में उज्जयिनी का अट्टणमल्ल ही बाजी मार ले जाता।
राजा सिंहगिरि ने सोचा- क्या मेरे राज्य में ऐसा कोई मल्ल नहीं हो सकता जो अट्टण को पराजित करके विजय-पताका प्राप्त कर सके? किसी दूसरे देश