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अ° १-२]
જન આગમ સાહિત્ય
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भी फेरफार क्यों है इत्यादि विषय की चर्चा किसी अन्य लेखमें कि जागगी ।
आगम साहित्य संबंधी प्रश्न - अब आगमसाहित्य संबंधी कतिपय प्रश्न सहज उद्भव होते हैं वे लिखता हूं । आगमतत्त्ववेत्तागण समुचित उत्तर देनेका अनुग्रह करें:
१ आगमसाहित्य व उनके रचयिता संबंधी उल्लेख प्राचीन व नवीन प्रामाणिक ग्रन्थोंमें कहां कहां प्राप्य हैं ?
?
२ नंदीसत्र में निर्दिष्ट सभी आगम उस रूपसे मानने योग्य क्या इतने ही ग्रन्थ थे श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ही है या भिन्न ? दोनोंको भिन्न माना है । यदि देववाचक काल क्या है ?
समय उपलब्ध थे ? आगम नंदी के रचयिता श्री देववाचक प्रश्न पद्धति में हरिश्चन्द्रगणिने भिन्न हैं तो उनका अस्तित्व
३ पक्खिसूत्र के रचयिता व रचनाकाल क्या है ? इनमें जो ५ ग्रन्थों के नाम अधिक हैं वे नंदीमें क्यों नहीं है ? उनमें से अभी अनुपलब्ध आगम कब विनष्ट हुए ?
४ अंगों के साथ उपांगों का संबंध जोडना कितना प्राचीन है ? उपांगरूपसे मान्य ग्रन्थ कबसे उपांग- कल्पनामें आए व वे पहले कितने थे ? उनका रचनाकाल तथा कर्ता (पन्नवणा के अतिरिक्त) कौन है ? इसी प्रकार छेद ग्रन्थोंकी संख्या ६ व मूलकी ४ कबसे निश्चित हुई ? अंगों के साथ उपांगोंका संबंध कहां तक ठीक है ?
५ आगमोंकी संख्या ४५ कबसे निश्चित हुई ? संख्या व नामसूची सबसे प्राचीन कौनसे ग्रंथमें है ? ४५ आगमों में नंदीमें उपलब्ध कई आगमोंको छोडकर पिण्डनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति जैसे निर्युक्तिग्रथोंको क्यों सामिल किया गया ? आगमोंकी संख्या ८४ कही जाती है उसका कोई प्राचीन उल्लेख या नामसूची लभ्य है ?
६ महानिशीथ के उद्धार कर्ताओंके ८ नाम आते हैं वे समकालीन नहीं, तब उन्होंने मिलकर कैसे उद्धार किया ? बृहत् टिप्पनिका आदिमें उनकी तीन वाचनाओंका जिक्र हैं वे तीनों अभी उपलब्ध हैं ?
७ अंगों की पद - प्रमाण संख्या द्विगुण कहां तक ठीक है ? वह संभव पर भी कैसे हो सकती है, क्योंकि भगवती तकके ग्रंथ इतने परिमाणमें उपलब्ध हैं और ज्ञाता, उपाशकादि इतने छोट रूपमें ही कैसे याद रहे ? पदका परिमाण क्या ? नंदीके समय या ग्रंथलेखनके समय क्या वर्तमामान में उपलब्ध पदप्रमाण ( ग्रंथाग्रन्थ ) ही आगम थे ?
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