Book Title: Jain Journal 1938 01 to 12
Author(s): Jain Bhawan Publication
Publisher: Jain Bhawan Publication
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શ્રી જૈન સત્ય પ્રકારા
[ मासिक पत्र]
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४मा ४६-४७
[ वर्ष ४ : १०-ii]
॥ श्री उपाध्यायपदस्तोत्रम् ॥
कर्ता - आचार्य महाराज श्री विजयपद्मसूरिजी ( क्रमांक ४३ थी चालु ) ( आर्यावृत्तम् )
अंगे सगभयणासे, पवरोवासगदसंगणामम्मि || आणंदाइयसड्डा, कहिया डा सेय
तेसिं वयपरिगहणा, गणिम्मलपरिपालणा विहाणेणं || सावगवय परियाया - गिहवासनिरूवणं वावि किचाणसणं सग्गे, उपजंते महाविदेहे य ॥ सिद्धिं पाविस्संति, इयवृत्तं सत्तमं गंमि एगसुरक्खधो, दस अज्झयणाई तहोवसग्गाणं सहणं पडिमावहणं, ओहिसरूवं तहा दुण्हं उवसग्गावसरे sवि धम्मित्तं रक्खंणिज्ज मिय बोहं ॥ विय सड्डाण मिणं, सुहधम्मियजीवणोवार्य पवरंतगडदसांगे, अडवग्गा चरणकरणवत्ताओ ॥ अझयणाई नबई णेओ एगो सुयक्खंधो आयणिऊण वाणि, सिरिणेमिजिणस्स निरुवमं सुहयं ॥ गोयमसमुहसागर - पमुहा सिद्धा चरणजोगा एगसुयक्खंधजुयं, वग्गतिगाणुत्तरोववाइसुयं ॥ तेत्तीसज्झयणमयं, नवमंग मिणं मुणेयव्वं जालिमयालुवयाली अभयकुमारो य धारिणीतणया || सग दी सेणपमुहा, तेरसपुत्ता पसमपत्ता काकंदीवत्थव्वो, धण्णो बत्तीसगेहिणीचाई ॥ सुणक्खत्ताइणरा, सोचा सिरिवीरवयणाई आराहियवरचरणण पत्ताणुत्तरविमाणसंपत्ती ॥ तेसिं वरणवमंगे, कहियं वरजीवणं सुहयं पावागरणंगे, विज्झामंताइगब्भपण्हसयं ॥ आसव संवरभाषा, पूयाणामं तह दयाए
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॥ ३३ ॥
॥ ३४ ॥
॥ ३५ ॥
॥ ३६ ॥
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॥ ३९ ॥
।। ४० ।।
॥ ४१ ॥
॥ ४२ ॥
॥ ४३ ॥
[ अपूर्ण ]
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