________________
६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ संघ में (तीर्थ में), ब्राह्मी के नेतृत्व में तीन लाख साध्वियाँ तथा पाँच लाख चउपन हजार व्रतधारिणो श्राविकाएँ थीं। ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है ।'
जैन धर्म को प्रातःस्मरणीया सतियों में ब्राह्मी का स्थान पूजनीय है। इन्हीं के माध्यम से अठारह लिपियों का ज्ञान समाज को प्राप्त हुआ। इस प्रथम साध्वी ने महिलाओं के लिये आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। सुन्दरी: ___पिता ऋषभदेव तथा माता सुनन्दा की पुत्री सुन्दरी अत्यंत गुणवान् तथा रूपवान् कन्या थी। बाहबली इनके सहोदर बन्धु थे। पिता श्री ने यौगलिक प्रथा का खण्डन करते हुए सुन्दरी का पाणिग्रहण भरत के साथ करवाया । सम्राट ऋषभदेव ने सुन्दरी को सर्वप्रथम गणित विद्या का ज्ञान कराया, जिसके अन्तर्गत व्यवहार साधन हेतु मान (माप), उन्मान (तोला, मासा), अवमान (गज, फुट, इंच) व प्रतिमान (छटांक, सेर, मन) आदि के ज्ञान देने की शुरुआत की तथा मणि आदि पिरोने की कला भो बताई। इन्होंने ऋषभदेव द्वारा प्रारंभ की हई चौंसठ कलाओं की शिक्षा ग्रहण कर विशेष योग्यता प्राप्त की । ज्ञान की वृद्धि तथा त्याग के प्रत्यक्ष प्रमाण के फलस्वरूप सुन्दरी को भी सांसारिक सुखों की नश्वरता का अनुभव हो चुका था और इसलिये वे भी दीक्षित होकर आत्मकल्याण करना चाहती थीं। दिगम्बर परम्परा के अनुसार सुन्दरी ने भगवान् ऋषभदेव के प्रथम प्रवचन से ही प्रतिबोध पाकर ब्राह्मी के साथ दीक्षा ग्रहण की थी। किन्तु श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भरत की आज्ञा प्राप्त न होने से वह श्राविका बनीं। भरत का विचार था कि "चक्ररत्न से षट्खण्ड पृथ्वी को जीत कर सुन्दरी को स्त्री-रत्न की पदवी दी जाये । १. कल्पसूत्र १६७ सू. २. भगवती (व्याख्याप्रज्ञप्ति) ५५३, स्थानांगवृत्ति पृ० ५२३, कल्पसूत्रवृत्ति
पृ० ३८ ३. आवश्यक मलय-वृत्ति-पृ० २०० ४. आवश्यकनियुक्ति गा० २१३ ५. महापुराण २४।१७६ ६. (क) सुन्दरी पव्वयंती भरहेण इत्थीरयणं भविस्सइति निरुद्धा साविया जाया
-आवश्यक वृत्ति-(मलयगिरि), पृ० २२९ (ख) आ० हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक इतिहास-पृ० ४८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org