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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : ८७ शनैः शनैः परिचय बढ़ता गया और नन्दा भी इस युवक की ओर आकृष्ट हो गई। नन्दा के पिता भद्र श्रेष्ठी को जब मालूम हुआ तो वे बड़े प्रसन्न हुए और नन्दा का विवाह श्रेणिक से करने को तैयार हो गये।
श्रेणिक को जब यह बात मालूम हुई तो वह श्रेष्ठी पुत्री नन्दा से बोले, 'भद्रे ! मेरे समान अपरिचित व्यक्ति जिसके माता-पिता व वंश का
आपको पता न हो, उससे विवाह करना कदापि उचित न होगा।' इस पर नन्दा ने मर्यादापूर्वक उत्तर दिया, 'हे भाग्यवान् ! मैंने निश्चय कर लिया है कि यदि मैं विवाह करूंगी तो आपसे ही करूँगी, नहीं तो संयमपूर्वक कौमार्य व्रत धारण कर जीवन बिताऊँगी। आप परदेशी हैं, विवाहोपरान्त मुझे छोड़कर यदि चले भी जायेंगे तो मैं पतिव्रत धर्म का पालन करती हुई दिन-रात आपका नाम जपती रहूंगी।' श्रेष्ठी ने अपनी पुत्री का दृढ़ निश्चय जानकर बहुत धूमधाम से दोनों का विवाह संस्कार सम्पन्न किया। भार्या नन्दा के साथ श्रेणिक ने कुछ समय आनन्द से व्यतीत किया।
तत्पश्चात् श्रेणिक के पिता प्रसेनजित् के व्याधिग्रस्त होने पर श्रेणिक अपनी एक निशानी नन्दा को देकर राजगृह चले गये। यहाँ नन्दा के गर्भ को जब तीन महीने हुए तो उसे एक दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं हाथी पर चढ़कर बाजे-गाजे के साथ निकलू, रास्ते में जो दीन-दुःखी मिलें उन्हें दान देकर उनका दुःख दूर करूँ, अहिंसा धर्म का पालन करूँ और साधु-सन्तों को सात्विक भोजन कराके धर्म प्रचार करवाऊँ । पुत्री नन्दा की इस अभिलाषा को जानकर उसकी माता प्रसन्न हुई। मातापिता ने नगर के राजा से हाथी माँगकर पुत्री का मनोरथ पूर्ण किया। यथासमय नन्दा ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । माता महे ( माता के पिता ) ने शुभ दिन और मुहूर्त में 'अभयकुमार' नामकरण किया ।३
कालान्तर में अभय कुमार कई कलाओं में पारंगत हुए। माता से पिता का परिचय प्राप्त कर माता नन्दा को साथ लेकर राजगह की ओर
१. (क) उपा० चन्द्रतिलक-अभयकुमार मंत्रीश्वर जीवन चरित्र, पृ० २४
(ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० १०८ २. कल्याण, नारी अंक, पृ० ७१३ ३. बौद्ध परम्परा में अभयकुमार उज्जैनी की पद्मावती गणिका से उत्पन्न हए
श्रेणिक का पुत्र था ऐसा उल्लेख प्राप्त होता है। (थेरीगाथा-३१-३२) .
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