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स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय की साध्वियों का संक्षिप्त परिचय
- पं० २० मोतीऋषिजी
महासती श्री राधा जी
इनका विशेष परिचय तो प्राप्त नहीं होता है, लेकिन ये अपने समय की प्रभावक स्थानकवासी साध्वियों में थीं । इन्होंने चतुर्विध संघ के संगठन एवं महिला वर्ग की जागृति में विशेष योगदान दिया था । प्रतापगढ़ भण्डार से प्राप्त एक प्राचीन पत्र से ज्ञात होता है कि इन्होंने सं० १८१० ( ई० सन् १७५३) में हुए चार स्थानकवासी सम्प्रदायों के सम्मेलन में ऋषि सम्प्रदाय की ओर से भाग लिया था । इनकी प्रधान शिष्या महासती श्री किसना जी, श्री किसना जी की शिष्या जोता जी, श्री जोता जी की शिष्या ताजी हुईं। श्री मोता जी की शिष्या श्री कुशलकुँवर जी थीं ।
साध्वी श्री कुशलकुंवर जी
ये मालवा प्रान्त में बागड़देशीय हाबड़ा ग्राम को थीं । इन्होंने साध्वी मोताजी से दीक्षा ग्रहण की थी । वे प्रभावक एवं संयमनिष्ठ तथा व्याख्यानकुशल साध्वी थीं। इनके ज्ञान और चारित्रिक धर्म से प्रभावित होकर १२५ साधू, १५० साध्वी संघ के प्रमुख श्री धन ऋषि ने इन्हें अग्रणी माना और प्रवर्तिनी पद से सुशोभित किया । इनकी प्रमुख शिष्या थीं
१. साध्वी श्री सरदारा जी, २. श्री धनकँवर जी, ३. श्री दया जी, श्री लक्षमा जी ।
इनमें साध्वी श्री दया जी और श्री लक्षमा जी की शिष्या - परम्परा आगे चली ।
साध्वी श्री सरदारा जो
इन्होंने साध्वी श्री कुशल कुँवर जी से दोक्षा ग्रहण की थी । ये साध्वी रंभा जी से स्नेह रखने के कारण साथ-साथ विचरण करती थीं । ये प्रकृति से सरल, भद्र परिणामी, धार्मिक और व्याख्यान कुशल थीं ।
* यह विवरण पं० २० मोती ऋषिजी कृत ऋषिसम्प्रदाय के इतिहास पर आधारित है और उसका ही संक्षिप्तीकरण मात्र है ।
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